पुलवामा आतंकी हमले में 42 जवानों के शहीदों के बाद पूरे देश में गुस्सा है। कश्मीर के पुलवामा जिले में गुरुवार दोपहर जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकवादी ने विस्फोटकों से लदे वाहन से सीआरपीएफ जवानों को ले जा रही बस को टक्कर मार दी, जिसमें 42 CRPF जवान शहीद हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के सभी राजनीतिक दलों और दुनिया भर में इस कायरने हमले की कड़ी निंदा की जा रही है| वहीं देश में अब एक ही आवाज उठ रही है, बदले की| जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ के स्पेशल डीजी रह चुके एनके त्रिपाठी ने का मानना है कि इस घटना से सबक लिया जाए और निर्णायक कार्रवाई हो। केवल ‘कड़ी निंदा” से काम नहीं चलेगा। अब कठोर रुख अपनाते हुए पाकिस्तान समर्थित आतंक का सफाया करना ही होगा। उन्होंने इस हृदयविदारक घटना पर एक लेख लिखा है|
“कश्मीर घाटी में श्रीनगर से कुछ ही किलोमीटर दूर जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर पुलवामा जिले के अवंतिपुर के पास सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादियों ने घात लगाकर हमला किया। जिसमें दु:खद रूप से देर रात तक 42 सुरक्षाकर्मियों की शहादत हो गई। अनेक जवान गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। 50 गाड़ियों से अधिक का यह काफिला सीआरपीएफ के लगभग दो हजार अधिकारियों और जवानों को लेकर जा रहा था। बताया जाता है कि घटनास्थल के पास आतंकवादियों ने अपनी गाड़ी, जिसमें भारी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ भरा हुआ था, उसे काफिले में चल रही एक बस से टकराकर विस्फोट किया। इसके बाद आतंकवादियों ने गोलियां भी चलाईं। बताया जा रहा है कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का एक स्थानीय आतंकवादी आदिल अहमद डार इस आत्मघाती हमले में सम्मिलित था। यह कायराना हमला पिछले अनेक वर्षों में घाटी में किया गया सबसे घातक आतंकवादी हमला बन गया। दक्षिण कश्मीर के स्थानीय आतंकवादियों द्वारा किया गया यह हमला अत्यंत गंभीरता का विषय है। निश्चित रूप से इस घटना से सुरक्षा बलों को एक बड़ा धक्का लगा है”।
“पिछले कुछ वर्षों से सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के विरुद्ध जो जबरदस्त, निर्णायक और बहुत ही कारगर कार्रवाई की है, ये हमला उसी से उपजी बौखलाहट का परिणाम है। हमारी जांबाज सेना और सीआरपीएफ के वीर जवानों ने मिलकर पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए तथा घाटी में स्थानीय रूप से पलने वाले आतंकवादियों का बड़े पैमाने पर सफाया किया है। बीते तीन-चार वर्षों में कश्मीर घाटी में आतंक की कमर तोड़ने में हमारे सुरक्षाबल काफी हद तक सफल रहे हैं। कुछ ही दिन पूर्व उत्तरी कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने बयान दिया था कि सुरक्षा बलों ने वर्ष 2018 में लगभग ढाई सौ आतंकवादियों का सफाया किया है। यह पिछले 10 वर्षों की सबसे प्रभावी कार्रवाई थी। लिहाजा, आतंकवादियों की ओर से ऐसे किसी कायराना पलटवार का अंदेशा तो हर समय बना ही हुआ था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ को सीमा पर सेना और सीआरपीएफ ने कारगर तरीके से नियंत्रित किया है। विगत कुछ वर्षों में दक्षिण कश्मीर स्थानीय आतंकवादियों को पैदा कर रहा है और दु:खद यह है कि इन लोगों को वहां पर शरण भी मिल रही है। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि भारतीय सेना की जबरदस्त कार्रवाई और सरकार की ओर से मिली खुली छूट से बढ़े मनोबल के कारण आतंकवादियों की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इसी कारण पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर जैश-ए-मोहम्मद द्वारा यह सुनियोजित कायरतापूर्ण कार्रवाई की गई है”।
“जहां तक इस घटना का प्रश्न है, इसमें कहीं न कहीं सुरक्षा-सतर्कता में चूक अवश्य हुई है। इतने बड़े काफिले की सुरक्षा के लिए रोड ओपनिंग पार्टी की सतर्कता बहुत आवश्यक है। बताया जा रहा है कि आतंकवादियों की एसयूवी गाड़ी ने काफिले के साथ-साथ चलते हुए यह घटना कर दी। इस संदिग्ध गाड़ी को सफलतापूर्वक रोका नहीं जा सका, जिसका खामियाजा जवानों की इतनी दर्दनाक शहादत के रूप में भुगतना पड़ा। भविष्य में सीआरपीएफ तथा सेना को अपने काफिले की सुरक्षा के लिए और सतर्क होना पड़ेगा। घटना होने के पश्चात मीडिया तथा टीवी चैनलों के वातानुकूलित चैम्बरों में बैठे विशेषज्ञ अपनी-अपनी राय दे रहे हैं, मैं उन पर कोई टीप नहीं करना चाहता, किंतु इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि केवल बात करने और जमीनी स्तर के हालात में जमीन-आसमान का अंतर होता है। हमें यह समझना होगा कि सुरक्षा बल देश के किसी भी विशेषज्ञ से ज्यादा सतर्क और चुस्त होते हैं। वे अपनी जान ही नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा करना भी हमसे ज्यादा बेहतर जानते हैं। इसलिए उनकी आंतरिक खामियों और जमीनी हालात के तालमेल पर प्रश्न उठाने का किसी को कोई अधिकार नहीं, किंतु भयावह त्रासदी के इस समय हमें हमारे सुरक्षा बलों के समर्थन में पूरे विश्वास के साथ खड़ा होना होगा। यह भी समझना होगा कि बिना जोखिम लिए कोई भी सुरक्षाबल कार्रवाई नहीं कर सकता। पूर्व खुफिया सूचना न होने का विलाप करना निरर्थक है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल द्वारा सुरक्षा बलों को और चौकस रहने की हिदायत देना केवल रस्मअदायगी ही माना जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घटना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि देश पूरी ताकत के साथ इसका जवाब देगा। कुछ क्षेत्रों में दबी जबान से दोबारा सर्जिकल स्ट्राइक करने की बात भी की जा रही है। किंतु इन सबके साथ-साथ सर्वाधिक जरूरत इस बात की है कि इस घटना से सबक लिया जाए और निर्णायक कार्रवाई हो। यह हर हाल में सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी किसी वारदात की पुनरावृत्ति न हो। सनद रहे कि दस आतंकी मार देने से भी ज्यादा जरूरी हमारे एक भी सैनिक का बचना है। हमारे सुरक्षाबलों को अब डिफेंसिव अर्थात रक्षात्मक रणनीति न अपनाकर आक्रामक कूटनीति अपनानी होगी। हालांकि बदले जैसी किसी भी कार्रवाई की तैयारी के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अब हमारा कोई भी जवान हताहत न हो”।
“पुलवामा में हुई यह कायराना वारदात आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद द्वारा की गई है। जैश का मुख्य सूत्रधार मसूद अजहर पाकिस्तानी भूमि से अपनी गतिविधियों का संचालन कर रहा है। पाकिस्तान के साथ-साथ चीन भी मसूद की ढाल बना हुआ हैै। यह चीन ही है जो संयुक्त राष्ट्र में बार-बार मसूद अजहर के बचाव में उतर आता है। विडंबना यह है कि पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा करतारपुर साहिब कॉरिडोर जैसी छद्म शांतिपूर्ण पहल तो की गई है, परंतु पाकिस्तान के आतंकवादी ढांचे को छूने का साहस उनमें नहीं है। इस आतंकी कार्रवाई से ये स्पष्ट हो गया है कि भले ही लिबरल दिखने वाले इमरान खान वहां सत्ता में हैं, लेकिन पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है। पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति वैसी ही बनी हुई है, जैसी सैन्य तानाशाह ने निर्मित की थी। पिछले करीब 60 वर्षों से चीन से मिल रही सतत सहायता से भी पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध कार्रवाई करने की शक्ति प्राप्त होती रही है। संयुक्त राष्ट्र में भी अजहर मसूद के मामले में चीन ने उसका पूरा सहयोग किया है। इन सब तथ्यों और अंतरराष्ट्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए इस घटना के बाद भारत को कूटनीतिक हलकों में नई पहल करनी होगी। वर्तमान केंद्र सरकार ने बीते करीब साढ़े चार वर्षों में विदेश नीति और कूटनीति के स्तर पर काफी बेहतर रणनीति अपनाई है। मोदी सरकार ने कूटनीति को अलग स्तर पर ले जाकर दुनियाभर के देशों से प्रगाढ़ संबंध बनाए हैं और पाकिस्तान को अलग-थलग किया है। अब उन्हीं संबंधों और रणनीतियों को उचित ढंग से साधकर जवाबी कार्रवाई के लिए तैयारी करनी चाहिए। ध्यान रहे कि आगामी लोकसभा चुनावों के कारण हमारी विदेश और रक्षा नीतियों में भटकाव नहीं आना चाहिए”।
“देशवासियों को यह भी देखना होगा कि राजनीतिक लोगों का कार्य ही राजनीति करना है, अत: आने वाले दिनों में सभी राजनीतिक दल इस घटना की व्याख्या अपने-अपने हितों के अनुकूल करेंगे। किंतु अब समय आ गया है कि सुरक्षा बलों की कठिन परिस्थिति को देखते हुए तथा देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए सभी दल मिलकर एक समन्वित नीति तैयार करें”।
(लेखक जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ के स्पेशल डीजी रह चुके हैं)