विजेश लूनावत को याद कर बोले कैलाश विजयवर्गीय- मिलने का वादा कर कहां चले गए

Pooja Khodani
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कैलाश विजयवर्गीय

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्‍य प्रदेश (Madhya Pradesh) के वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष विजेश लूनावत (Vijesh Lunavat) का आज हृदय गति रुकने से निधन हो गया। बीते दिनों वे कोरोना संक्रमित पाए गए थे और भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे, उनके निधन की खबर लगते ही पार्टी में शोक की लहर दौड़ गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) से लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है। वही बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी उन्हें अपने अंदाज में याद किया और भावुक होकर कहा कि मिलने का वादा कर कहां चले गए।

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कैलाश विजयवर्गीय ( Kailash Vijayvargiya) ने कहा कि निशब्द….अफसोस….बेहद त्रासदपूर्ण।अभी 3 मई की तो बात है। विजेश भाई ने फोन कर कहा, आप तो हमारे बब्बर शेर हो, मध्य प्रदेश के गौरव हो। बंगाल में आपने भाजपा को तीन से 76 सीटों पर पहुंचा कर जो इतिहास रचा है, वह काबिले तारीफ है।मेरा ध्यान उनकी बातों से अधिक उनकी दर्द भरी कमजोर आवाज़ पर गया।चिंतित भाव से जब पूछा कि आपकी आवाज दबी-दबी सी क्यों है तो लगभग टालने वाले अंदाज़ में बोले, कुछ खास नहीं। आप आओगे तो मिलकर अच्छा हो जाऊंगा।

कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि मैंने भी तय किया कि इंदौर लौटते समय उनसे भोपाल में मिलकर जाऊंगा। हे ईश्वर, ये तेरा कैसा विधान है? समझ ही नहीं पा रहा हूं कि इतना कर्मठ, यारबाज, कुशल संगठक किसी बीमारी की चपेट में कैसे आ गया? वे तो कभी कोई लड़ाई नहीं हारे, तब कमबख्त कैंसर कैसे हावी हो गया। मप्र भाजपा के बीते दो दशक में ऐसा कोई काम नहीं, जिसमे वे शरीक न हों। चुनाव और मीडिया प्रबंधन में वे बेजोड़ थे।वे एकसाथ परदे के आगे और पीछे दमदार भूमिका निभाते थे।

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कैलाश विजयवर्गीय ने आगे कहा कि मीडिया, भाजपा, प्रशासन, समाज के बीच वे कभी रस्सी पर चलकर तो कभी राजमार्ग पर सरपट दौड़कर तालमेल बिठा लेते थे।इतना सब करते हुए भी अहंकार से परे अहरनिश कर्म प्रधान कृतित्व के वे धनी रहे।उनकी एक खूबी यह भी थी कि वे बुजुर्ग,प्रौढ़ और युवा पीढ़ी के साथ भी अद्भुत सामंजस्य बिठा लेते थे। विजेश भाई अनेक मौकों पर सैनिक से लेकर सेनापति तक का दायित्व सहजता से निभा ले जाते। वे याद नहीं आयेंगे,बल्कि भुलाए ही न जा सकेंगे।यह अफसोस हमेशा रहेगा कि उनसे मिलने का वादा पूरा न हो सका।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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