भोपाल।
SLP (C) no 23701/2019 जो उत्तराखंड राज्य में पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में थी, पर मान सर्वोच्च न्यायालय की युगल पीठ (जस्टिस एल नागेश्वर राव तथा जस्टिस हेमंत गुप्ता) ने दिनांक 7.02.2020 को पारित अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि अनु जाति/ जनजाति वर्ग के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए नियुक्ति में आरक्षण/ पदोन्नति में आरक्षण के लिए किसी राज्य सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता। संविधान की धारा 16 और 16(4a) आरक्षण का मौलिक अधिकार नहीं देती बल्कि वह किसी भी राज्य को इसके लिए प्रावधान करने के लिए सक्षमता देती है। अर्थात यह किसी राज्य सरकार पर निर्भर है कि वह ऐसा करना चाहती है या नहीं। इसके लिए संवैधानिक रूप से नियम बनाने हेतु वह बाध्य नहीं है।
उल्लेखनीय है कि नया राज्य बनने के बाद उत्तराखंड राज्य में पदोन्नति में आरक्षण के वही नियम लागू कर दिए गए थे जो उत्तरप्रदेश में प्रभावशील थे एवम् एक निर्णय में इन नियमों को मान सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया था, फलस्वरूप उत्तराखंड सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण के नए नियम न बनाते हुए “योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति करने के आदेश दिए थे। उक्त आदेश के विरुद्ध उत्तराखंड उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में मान न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार को शासकीय सेवाओं में विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधित्व के आंकड़े एकत्रित करने का निर्णय दिया था। निर्णय के विरुद्ध मान सर्वोच्च न्यायालय में की गई अपील पर मान सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त निर्णय पारित किया है।
यह स्पष्ट है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है, न ही कोई सरकार इसे लागू करने के लिए बाध्य है। मध्य प्रदेश में “पदोन्नति में आरक्षण” के संबंध में भी बने नियम वर्ष 2002 को मान उच्च न्यायालय जबलपुर खारिज कर चुका है जिसके विरुद्ध प्रदेश सरकार मान सर्वोच्च न्यायालय गई है और प्रकरण अंतिम निराकरण के लिए अभी भी लंबित है। पिछले 3 वर्षों से प्रदेश में मान सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के कारण पदोन्नतियां बाधित हैं। तंत्र में चर्मारहट को रोकने के प्रयास में पिछली सरकार ने सेवा निवृति की उम्र 2 वर्ष बढ़ाकर 62 वर्ष की थी, वर्तमान सरकार भी इसे और बढ़ाने पर विचार कर रही है। लेकिन सरकार की ओर से प्रकरण में शीघ्र निर्णय की कोई कोशिश नहीं की जा रही है।
इस संबंध में कर्मचारी संगठन सपाक्स का स्पष्ट मत है कि मप्र पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 पूरी तरह असंवैधानिक हैं। सरकार न तो नए नियम बना रही है न वरिष्ठता के आधार पर सामान्य/ पिछड़ा वर्ग के सेवकों की पदोन्नति कर रही है, जिस पर कोई प्रतिबंध नहीं है और मान उच्च न्यायालय धीरेन्द्र चतुर्वेदी विरुद्ध मप्र शासन प्रकरण में अपने निर्णय में यह स्पष्ट कर चुकी है। संगठन सरकार से अपील करता है कि मान न्यायालय के निर्णय को लागू करते हुए सामान्य/ पिछड़ा वर्ग की पदोन्नतियां तत्काल प्रारंभ करे।
कांग्रेस ने किया कोर्ट के फैसले का विरोध
कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रमोशन में आरक्षण को मौलिक और संवैधानिक अधिकार नहीं मानने साथ ही इसे सरकार का विवेकाधिकार बताए जाने पर आज कड़ी आपत्ति व्यक्त की और इसके लिए केन्द्र और उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार बताया।कांग्रेस के महासचिव मुकुल वासनिक और दलित नेता उदित राज ने कहा कि कांग्रेस पार्टी इस फैसले से असहमत है। यह फैसला बीजेपी शासित उत्तराखंड सरकार के वकीलों की दलील के कारण आया है। इसलिए इस फैसले की जिम्मेदारी भाजपा की है। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत और सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने आरक्षण को अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला बताते हुए इसे समाप्त करने की वकालत की थी। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसका विरोध किया है