भोपाल।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति अपने पूरे उफान पर है। राजनैतिक दल जीत के लिए पूरा दम लगाए हुए है। एक तरफ भाजपा चौथी बार सत्ता बनाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रही है।वही दूसरी तरफ कांग्रेस चौदह साल का वनवास काट सत्ता वापसी का ख्वाव सजाए हुए है।लेकिन पिछले चुनाव में प्रदेश की 223 सीटे छोड़ दी जाए तो 7 ऐसी सीट रही है,जिन पर ना तो भाजपा अपना कब्जा जमा पाए ना ही कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। इन सीटों पर केवल निर्दलीय ही अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए है।इसमें चार में बसपा और तीन में निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बने। लेकिन इस बार समीकरण बदले है। क्योंकि तीनों निर्दलीय विधायक अब भाजपा में शामिल हो चुके है और भाजपा की तरफ से मैदान में उतरे है।हालांकि बसपा के प्रत्याशियों ने पार्टी नही बदली ,जिसका परिणाम ये है कि पार्टी ने फिर से उन पर भरोसा जताकर एक बार फिर मैदान की कमान सौंपी है।
सबसे पहले हम उन तीन निर्दलीयों की बात करेंगें जो अब भाजपा का नेतृत्व कर रहे है।इनमें सीहोर से सुदेश राय, सिवनी से दिनेश राय (मुनमुन) और थांदला से कलसिंह भाबर शामिल है, जिन्होंने पिछला चुनाव निर्दलीय लडा था और जीते थे। खास बात ये है कि इनमें से भाबर भाजपा के ही बागी बनकर जीते थे, वो 2003 में भाजपा से विधायक बने थे, लेकिन 2008 में कांग्रेस के वीर सिंह भूरिया से हार गए थे। जब 2013 में उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े और विधायक चुने गए। अब वो भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के पूर्व विधायक वीर सिंह भूरिया से मुकाबला कर रहे हैं।
वहीं, सुदेश और दिनेश दोनाें की पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। इस बार सीहोर में सुदेश त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे हैं, उनके सामने कांग्रेस के पूर्व सांसद सुरेंद्र सिंह ठाकुर हैं। भाजपा से टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व विधायक रमेश सक्सेना की पत्नी उषा सक्सेना निर्दलीय मैदान में आकर उनकी मुश्किलें बढ़ा रही हैं। यहां दिलचस्प बात यह है कि सक्सेना और राय दोनों ही कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर लड़े और निर्दलीय विधायक बने, लेकिन बाद में दोनों को भाजपा ने अपनाया। दिनेश भी हाल ही में भाजपा में आए हैं। उनके सामने कांग्रेस के मोहन सिंह चंदेल की चुनौती है। बसपा ने अपने मौजूदा विधायकों में से तीन को पुरानी सीटों से ही टिकट दिया है। सत्यप्रकाश को अंबाह, उषा चौधरी को रैगांव और शीला त्यागी को मनगवां से प्रत्याशी बनाया गया है।
इसके अलावा बसपा की बात करे तो पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ग्वालियर-चंबल और विंध्य अंचल में बसपा ने चार सीटें हासिल की थीं। इनके अलावा एक दर्जन सीटें ऐसी थीं, जहां बसपा उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। जबकि करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में उसके प्रत्याशी तीसरे स्थान पर आए। इसलिए बसपा यह मानकर चल रही है कि मप्र में उसके लिए अच्छी संभावनाएं हैं। पूरी ताकत से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में है। तीन दर्जन सीटों पर उसका प्रभाव इतना अधिक है कि वह बाजी पलटने की स्थिति में है।