पुलिस पर हमलों से व्यथित एक एसआई की सीएम डॉ मोहन यादव से अपील, हमारी तरफ देखिये,हमें जिन्दा रहने दीजिये

एस आई ने कहा कोई तो हमरी आवाज सुनेगा, मेरी आवाज किसी के कान तक तो पहुँचेगी, कोई तो हमारी तरफ देखेगा, दर्द समझेगा, मेरा अपने वरिष्ठ अधिकारियों से निवेदन है कि हम पर ध्यान दीजिये हमारी दशा पर भी ध्यान दीजिये, हम कितने कम फ़ोर्स के बाद भी सब मैनज कर रहे हैं और हम ही शिकार भी हो रहे हैं 

Atul Saxena
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Attack on police in MP : मध्य प्रदेश में पिछले दिनों पुलिस पर हुए हमले ने प्रदेश की कानून व्यवस्था पर तो सवाल खड़े कर ही दिए हैं साथ ही एक अजीब सा माहौल भी पैदा कर दिया है जिसमें भी पुलिस ही सबसे अधिक परेशान है, उसे ऐसा लगने लगा है कि वो आज असहाय है, उसकी चिंता करने वाला कोई नहीं है, कुछ ऐसी ही व्यथा बहुत दुखी मन से एक उप निरीक्षक ने सोशल मीडिया पर व्यक्त की है, एसआई ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और विभाग प्रमुख डीजीपी कैलाश मकवाना से अपील है “हमारी तरफ देखिये,हमें जिन्दा रहने दीजिये”

छतरपुर जिले के सिविल लाइन थाने में पदस्थ सब इंस्पेक्टर अवधेश कुमार दुबे एक रिटायर्ड आर्मी मैन है, उन्होंने करीब 18 साल भारतीय सेना में रहकर दुश्मनों के दांत खट्टे किये हैं, पुलिस में नौकरी करते हुए उन्हें 8 साल हो गए हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश पुलिस पर जो हमले हुए हूँ उससे वे दुखी हो गए हैं उनका मन बहुत व्यथित है, उन्होंने अपने मन में आ रहे विचारों को कल भाई दौज के दिन फेसबुक लाइव पर आकर साझा किया।

सब इंस्पेक्टर अवधेश कुमार दुबे ने मऊगंज में हुए एक एएसआई की मौत, इंदौर में वकीलों द्वारा पुलिस के टी आई  के साथ बदसलूकी, ग्वालियर में तहसीलदार और टीआई पर हमले की बात का जिक्र करते हुए मैं पुलिस में हूँ लेकिन मैं जो आपसे बात करने जा रहा हौं वो मेरे निजी विचार हैं विभाग का इससे कोई लेना देना नहीं है।

उन्होंने कहा कि यदि आप तीनों घटनाओं पर ध्यान दें तो एक बात कॉमन है वो ये इसमें एक समाज था , इंदौर में वकीलों का समाज था,  मऊगंजमें आदिवासी थे इसी तरह ग्वालियर में समाज विशेष था, भीड़ इकट्ठी हुई और पुलिस पर दबाव बनाया और हिंसा कर दी पुलिस पर हमला कर दिया , इस तरह पुलिस के साथ अराजकता करना एक गभीर बात है।

मन इसलिए भी ज्यादा व्यथित है कि मैं ऐसा विभाग से हूँ जहाँ हम भीड़ नहीं बना सकते धरना प्रदर्शन नहीं कर सकते, तो इसक मतलब की अहम् ऐसे ही शिकार होते रहेंगे, मुझे महीने की सेलरी मिलती है तो की अमीन चुप बैठा रहूँ, मैं एक सैनिक हूँ मुझमें जज्बा है अपनी बात कह सकता हूँ , संभव है इसका मुझपर प्रतिकूल असर हो लेकिन इसकी मुझे चिंता नहीं है, मैं अपनी बात कहता रहूँगा।

आज हमें महसूस हो रहा है कि हमारे पंजे नोच दिए गए हैं

एस आई अवधेश दुबे ने कहा हमारे जवान हैं जो पेट्रोलिंग करते हैं उन्हें हम बाज या फीट चीता नाम से जानते हैं, लेकिन आज हमें महसूस हो रहा है कि हमारे पंजे नोच दिए गए हैं आज बहुत दुःख हो रहा है, इंदौर की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा हालाँकि इस घटना में जो सरकार का एक्शन हुआ वो नियम के मुताबिक हुआ पुलिस कर्मी निलंबित कर दिए गए ये बात अलग है कि जिन वकीलों के साथ उन्होंने मारपीट की उनपर भी पहले से कई अपराध दर्ज है।

मैं भी यही करता, मुझे निलंबित होना मंजूर है

एसआई अवधेश दुबे ने कहा यदि मेरे साथ भी ऐसा कुछ हुआ होता तो मैं भी यही करता, मुझे निलंबित होना मंजूर है , मैं उन आरक्षकों से कहना चाहता हूँ कि मेरे जैसा हर शासकीय सेवक तुम्हारे साथ है वे बेदाग बरी होंगे और यदि नहीं भी हुए तो जमीर जिन्दा रहना चाहिए।

हमें तीर भी चलाने हैं और परिंदा भी ना मरे ये भी ध्यान रखना है

उन्होंने सरकार और विभाग के सीनियर अधिकारियों से कहा कि हमें आपने कैसे शस्त्र दिए है कि हमें तीर भी चलाने हैं और परिंदा भी ना मरे ये भी ध्यान रखना है मेरा मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और डीजीपी सर से निवेदन है कि हमारी तरफ भी देखिये हमें जिन्दा रहने दीजिये।

आप हमें गालियाँ देते हैं फिर भी हम आपकी सुरक्षा करते हैं 

एस आई से जनता से कहा कि आप हमें कितनी गालियाँ देते हैं  फिर भी हम आपकी सुरक्षा करते हैं क्योंकि ये हमरी जिम्मेदारी है हम त्योहारों पर काम करते हैं बिना छुट्टी लिए काम करते हैं क्योंकि आप सुरक्षित रहे और आप हमरी ही हत्या कर देते हो हमला कर देते हो, मेरा मन दुखी होता है कई बार इस्तीफा लिख चुका है फिर सोचता हूँ मेरे इस्तीफे से सिस्टम सुधर जायेगा समस्या दूर हो जाएगी नहीं तो आवाज तो उठानी ही पड़ेगी।

सौरभ शुक्ला छतरपुर


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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