दमोह,आशीष कुमार जैन। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के दमोह जिले (Damoh District) के अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खेमचंद बजाज (Freedom fighter khemchand bajaj) का 95 वर्ष की आयु में दुखद निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनके स्थान को भरा नहीं जा सकता।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नाथूराम सूत्रकार का सम्मान, कलेक्टर ने घर पहुंचकर पहनाया शॉल श्रीफल
स्वतंत्रता के संग्राम में अभूतपूर्व योगदान देने वाले खेमचंद बजाज ने अनेक बार जेल की यात्रा की और जुर्माने भी सहे, इसके बावजूद भी गांधीवादी विचारधारा (Gandhian ideology) से प्रेरित होकर गांधीजी(Gandhi JI) के दमोह आगमन के दौरान भी उन्होंने खूब सहभागिता दर्ज कराई. लेकिन स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में वे लोगों को स्वतंत्रता के समय की बातों से प्रेरित करते रहे और शुक्रवार को उनका देहावसान हो गया.
स्वतंत्रता के संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई श्री बजाज ने
1928 में जन्मे खेमचंद बजाज सागर जिले (Sagar District) के रहली तहसील अंतर्गत आने वाले ग्राम बलेह के रहने वाले थे, उनके पिता कोमल चंद बजाज कपड़े का व्यवसाय करते थे। खेमचंद बजाज ने जबलपुर के हितकारिणी विद्यालय में पढ़ाई की और पिता के निधन के बाद से वे स्वतंत्रता के आंदोलन से जुड़ गए। मात्र 11 साल की आयु में ही सन 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस (Congress) से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन (Independence movement को आगे बढ़ाया।
MP School : छात्रों के लिए खुशखबरी, 31 मार्च तक कर सकते है आवेदन
खेमचंद जी बजाज के पिता ने सन 1929 में विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी, तथा पास के अनंतपुरा गांव में खादी आश्रम की ब्रांच चरखा आश्रम चालू किया था. पिता की देव नंदिनी हस्त लेख पढ़कर कांग्रेस के प्रति लगाव बड़ा और पिता के स्वर्गवास के बाद सन 1941 में सक्रियता के साथ स्वतंत्रता संग्राम में कूदकर राष्ट्रप्रेम की अलख जगाई.
करो या मरो आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
सन 1942 में करो या मरो के नारे ने पूरे गांव में जोश की लहर पैदा की, तो 65 लोग सत्याग्रह करते हुए पकड़े गए. खेमचंद जी बजाज के साथ 35 साथियों को हवालात में बंद किया गया. 27 दिन तक चले केस के बाद 1 साल से लेकर 4 माह तक की जुर्माने की सजा और हवालात की सजा सुनाई गई. खेमचंद बजाज ने 9 माह 1 दिन तक की सजा जेल में काटी। इस दौरान सागर, जबलपुर (Jabalpur) शहर अन्य जिलों में खेमचंद बजाज को रखा गया, वहीं मई 1943 में अंग्रेजो के द्वारा उन्हें छोड़ दिया गया।
गांव के गांधी के रूप में जाने जाते थे खेमचंद बजाज
पूज्य बापू के सिद्धांतों के अनुरूप जीवन यापन करने के कारण लोग खेमचंद बजाज को गांव का गांधी कहकर पुकारते थे. अपने ग्राम बलेह उसके साथ ग्राम अनंतपुरा एवं रहली में स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण उन्हें लोग इसी नाम से पुकारते थे और जीवन पर्यंत गांधीजी के सिद्धांतों को पालन करते हुए गांधी टोपी लगाते थे.
दमोह के अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का जाना अपूरणीय क्षति
स्वतंत्रता के संग्राम में अपने जीवन को समर्पित करने वाले दमोह के अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के निधन पर प्रशासनिक अधिकारियों के साथ गणमान्य लोगों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है. अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में वह सभी की आस्था का केंद्र बने हुए थे. विशेष रूप से राष्ट्रीय पर्वों पर प्रशासनिक अधिकारी उनके घरों पर पहुंचते थे, वही मोदी सरकार (Modi Government) के केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल (Union Minister Prahlada Singh Patel) उनके जन्मदिन (Birthday) पर और राष्ट्रीय पर्वों के साथ अनेक अवसरों पर मिलने जाते थे, ऐसे में राजनेताओं के साथ शहर और जिले के गणमान्य लोगों के प्रेरणा के स्रोत भी थे।