बुलडोजर एक्शन पर बवाल, प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल, बड़े लोगों के अतिक्रमण बचाने के आरोप

स्थानीय लोगों का कहना है कि नाला 40 फीट चौड़ा करना है और हमारे मकान 100 फीट दूर हैं फिर भी गिरा दिए लेकिन पैसे वालों के मकान नाले के बिलकुल पास है उसे छोड़ दिया, ये भेदभाव होने नहीं देंगे

प्रदेश में बारिश पूर्व नालों की सफाई का अभियान चलाया जा रहा है, नगर निगम और नगर पालिका प्रशासन सहित अन्य नगरीय निकाय अपने अपने अमले के साथ फील्ड पर हैं लेकिन कई जगह नलों पर हुआ अतिक्रमण इसमें व्यवधान बन रहा है उधर स्थानीय लोग प्रशासन की कार्रवाई पर भी सवाल उठा रहे हैं।

पिछले साल के खराब अनुभव को देखते हुए इस बार दमोह प्रशासन बारिश से पहले एक्टिव मोड में है लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई से लोगों में खासा गुस्सा है और बुलडोजर एक्शन को लेकर बवाल हो रहा है। शहर के सुभाष कालोनी इलाके में बीते साल बाढ़ के हालात बने थे और सड़क पर नाव चली थी जिसके बाद कलेक्टर ने यहां के अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे, रात गई बात गई कि तर्ज पर सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया और अब जब बारिश आने वाली है तब फिर प्रशासन हरकत में आया है।

बुलडोजर एक्शन में भेदभाव के आरोप 

लगभग साल बीत जाने के बाद इस इलाके में बुलडोजर देखने को मिला, सुबह से कई मकान और नालों पर किया गया अतिक्रमण तोड़ा गया लेकिन कुछ बड़े  लोगों के मकानों को छोड़ने के बाद स्थानीय लोगों की नाराजगी बढ़ गई है। कालोनी के लोगो ने बुलडोजर एक्शन को रोक दिया है।

नायब तहसीलदार के भरोसे कार्रवाई 

स्थानीय लोगों का आरोप है कि गरीबों के निर्माण तोड़ दिए लेकिन जब बड़े लोगों की बारी आई तो उन्हें बचा लिया गया है। स्थानीय पार्षद भी लोगों के साथ खड़े हैं और उनका कहना है कि अतिक्रमण मुहिम में हर जगह जिम्मेदार बड़े अफसर मौज़ूद रहते हैं लेकिन यहाँ कार्रवाई एक नायब तहसीलदार के भरोसे छोड़ दी गई जिस वजह से भेदभाव पूर्ण कार्यवाही हो रही है।

प्रशासन रख रहा अपना तर्क 

वहीं इस मामले में मौके पर मौजूद नायब तहसीलदार का कहना है कि सभी लोगों को नोटिस दिए गए थे और विधिवत कार्यवाही हो रही है, जो मकान बन्द है उनके मालिक सामने नहीं आये उस वजह से उन्हें छोड़ा गया है और जल्दी ही वो भी गिराए जाएंगे।

दमोह से दिनेश अग्रवाल की रिपोर्ट 


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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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