खेल के दौरान बच्ची ने गंवाई जानः छज्जे पर छुपने गई दिव्यांशी गिरी नीचे, हुई मौत

Gaurav Sharma
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। अक्सर खेल-खेल में बच्चों की जान आफत में आ जाती है। ऐसा ही मामला ग्वालियर जिले से सामने आई है, जहां छुपन-छुपाई के खेल के दौरान एक बच्ची छज्जे से गिर गई। जिससे चार साल की बच्ची की मौत हो गई है।

मासूम हार गई जिंदगी जंग

दरअसल मामला ग्वालियर जिले के नौगांव कंपू क्षेत्र की घटना है, जहां एक चार साल की मासूम दिव्यांशी अपनी चाचा की बेटी के साथ दो मंजिल की छत पर खेल रही थी। जहां छुपने के दौरान बच्ची छत के छज्जे में चली गई और पैर फिसलने से सीधे नीचे जा गिरी। जिसके बाद परिजनों ने बच्ची को आनन-फानन में अस्पताल पहुंचाया, लेकिन 20 घंटे जिंदगी और मौत की जंग में बच्ची ने दम तोड़ दिया।

घटना के बाद सहमा परिवार

घटना के बाद से पूरे परिवार में मातम का माहौल है। वहीं कंपू पुलिस ने बच्ची का पोस्टमार्टम कराकर जांच शुरू कर दी है। बता दें कि बच्ची के पिता जितेंद्र सिंह बघेल मजदूरी करते है। जिनके दो बच्चे, एक बेटा और एक बेटी थी। जो अपनी चचेरी बहन मानसी के साथ खेल रही थी, और खेल-खेल में बिटियां की जान चली गई।

इस घटना के बारे में मृत बच्ची के पिता ने कहा कि अभी-अभी उन्होंने नया घर बनवाया है, जहां छज्जे में ग्रिल नहीं लगी है। वहीं दोनों बच्चियां खेल रही थी। वहीं पिता जितेंद्र ने कहा कि “काश! अगर मैं छज्जे पर ग्रिल लगा लिया होता, तो मेरी बेटी आज मेरे पास होती।”

आई थी गंभीर चोटें

पिता जितेंद्र ने बताया कि उनकी बेटी दो मंजिले छत के छज्जे से गिरी थी। जिसके कारण पूरी शरीर की पसलियों में गंभीर चोटें आई थी। वहीं सिर से भारी खून बह रहा था। बता दें कि डॉक्टरों ने भी उनकी बेटी को बचाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन बचा नहीं सके।

 


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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