MP Breaking News
Sun, Dec 14, 2025

दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज रेल, 119 सालों तक चला सफर, कभी थी चंबल की जान!

Written by:Sanjucta Pandit
उस दौर में इसमें केवल 6 से 8 डिब्बे हुआ करते थे। कोरोना काल आने से पहले यह ट्रेन मार्च के महीने में अपने अंतिम सफर पर निकली। ग्वालियर वापस आने के बाद यह कभी सफर पर नहीं निकल पाई।
दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज रेल, 119 सालों तक चला सफर, कभी थी चंबल की जान!

भारतीय रेलवे (Indian Railways) का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही अधिक मजेदार भी है। यह लोगों के लिए सस्ता और सुगम माध्यम माना जाता है। भारत का रेल नेटवर्क विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क माना जाता है, जहां चारों दिशाओं के लिए ट्रेन चलती हैं। इनमें राजधानी, दुरंतो, तेजस, वंदे भारत, शताब्दी, एक्सप्रेस, सुपरफास्ट सहित लोकल ट्रेनें शामिल है, जो पैसेंजर को उनके गंत्वय तक पहुंचाती है। कुछ ट्रेन लंबी दूरी तक चलती है। इस दौरान वह कई राज्यों से होकर गुजरती है, तो कुछ ट्रेन है… बहुत कम दूरी तक ही जाती है।

इंडियन रेलवे द्वारा आए दिन अपनी यात्रियों की सुविधा में तरह-तरह के बदलाव किए जाते हैं, ताकि उन्हें किसी प्रकार की कोई समस्या ना हो।

चंबल की लाइफ लाइन

ऐसे में आज हम आपको विश्व की सबसे लंबी नैरोगेज रेल के बारे में बताएंगे, जो कभी ग्वालियर और चंबल की लाइफ लाइन हुआ करती थी। इसकी नींव 1895 में अंग्रेजों द्वारा रखी गई थी, जिस वक्त आजादी के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी। ग्वालियर रियासत के महाराज माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर से भिंड के बीच नैरोगेज रेल की पटरिया बिछवाई थी।

इंजन की कीमत

बता दें कि 2 फीट की नैरोगेज रेल लाइन पर स्टीम इंजन के सहारे दौड़ती इस ट्रेन का नाम ग्वालियर लाइट रेलवे का नाम दिया गया था। उस दौर में इसका इस्तेमाल मालवाहक के रूप में किया जाता था। 1900 में महाराज सिंधिया की तरफ से इंडियन मिडलैंड रेलवे कंपनी ने ग्वालियर लाइट रेलवे का संचालन शुरू किया था। लगभग 5 सालों बाद आम जनता के लिए रेल सेवाएं खोल दी गई थी। तब ग्वालियर से सबलगढ़, वीरपुर होते हुए शिवपुरी तक पहुंची। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उस दौरान इस इंजन की कीमत ₹30000 से अधिक थी।

कोरोना काल में हुआ बंद

ग्वालियर नैरोगेज रेल को दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज लाइन की पहचान मिली, जो 200 किलोमीटर लंबा ट्रैक था। बदलते समय के साथ यह सेंट्रल रेलवे डीजल इंजन पर शिफ्ट हो गया। साल 1942 में ग्वालियर लाइट रेलवे का नाम बदलकर सिंधिया स्टेट रेलवे कर दिया गया। देश की आजादी के बाद साल 1951 में सिंधिया स्टेट रेलवे को भारत के सेंट्रल रेलवे ने खरीद लिया। इस रेलवे ट्रैक पर लगभग 119 सालों तक लोगों ने सफर किया। भिंड और शिवपुरी लाइन का 2010 तक लाइन में विस्तार हुआ। उस दौर में इसमें केवल 6 से 8 डिब्बे हुआ करते थे। कोरोना काल आने से पहले यह ट्रेन मार्च के महीने में अपने अंतिम सफर पर निकली। ग्वालियर वापस आने के बाद यह कभी सफर पर नहीं निकल पाई।