‘भ्रष्टाचार की प्याज’, छिलके उतारने वाली प्रमुख सचिव को हटाया

Gaurav Sharma
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भोपाल डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश में शनिवार की शाम एक प्रशासनिक निर्णय चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल प्रदेश के उद्यानिकी विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव और आयुक्त मनोज अग्रवाल को पद से हटा दिया गया है। हैरत की बात यह है कि मनोज अग्रवाल पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले की जांच प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव ही कर रही थी।

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उद्यानिकी विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव का तबादला प्रदेश के प्रशासनिक हलकों सहित राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है। राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विवेक तंखा ने तो बाकायदा ट्वीट करके इस तबादले को हैरतअंगेज बताया है। तनखा ने ट्वीट में लिखा है,”अजब और गज़ब मध्यप्रदेश @ChouhanShivraj का।जिस प्रमुख सचिव ने प्याज घोटाला उजागर किया, उसी को विभाग से हटा दिया…गज़ब है।

शिवराज जी आप क्या संदेश देना चाहते हैं, वो अब दिख रहा है। अब चुप रहने का समय भी ख़त्म हो रहा है।” दरअसल पूरा मामला इसी साल सितंबर महीने में सामने आया था जब उद्यानिकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष महेश प्रताप सिंह बुंदेला ने सीएम शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर आयुक्त मनोज अग्रवाल को हटाने की मांग करते हुए घोटाले को उजागर किया था।

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दरअसल इस साल उद्यानिकी विभाग ने राष्ट्रीय बागवानी मिशन में पहली बार किसानों के लिए प्याज की खरीदी की थी। 90 कुंटल प्याज की खरीदी 2 करोड रुपए में की गई थी। यह खरीदी बिना टेन्डर किये निजी संस्था से की गयी। आरोप यह था कि सब्जी बीज बेचने की दर 1100 रुपए प्रति किलो है तो 2300 रू प्रति किलो में बीज क्यों खरीदा गया! इस खरीदी का विधिवत अनुमोदन कृषि उत्पादन आयुक्त से आयुक्त सह मिशन संचालक मनोज अग्रवाल ने क्यों नहीं लिया! और जब योजना का क्रियान्वयन एमपी एग्रो के माध्यम से होना था तो फिर दूसरी संस्थाओं से खरीदी क्यों की गई ! शिकायतों के बाद प्रमुख सचिव उद्यानकी कल्पना श्रीवास्तव ने तत्काल एक्शन लिया और 18 अक्टूबर को आदेश जारी कर खरीदी के भुगतान पर रोक लगा दी और मनोज अग्रवाल से स्पष्टीकरण मागा। इसके बाद मामला ईओडब्ल्यू के पाले में चला गया और ईओडब्ल्यू ने भी मनोज अग्रवाल के खिलाफ जांच शुरू कर दी। लेकिन शनिवार को अचानक मनोज अग्रवाल को हटाने के साथ-साथ कल्पना श्रीवास्तव को भी हटा दिया गया जिसे लेकर अब सवाल यह उठ रहे हैं कि जिस अधिकारी ने इस पूरे मामले में खुद एक्शन लेकर भ्रष्टाचार को रोकने की कोशिश की आखिरकार उसे क्यों पद से हटाया गया।

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यह पहला मौका नहीं जब मनोज अग्रवाल के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हो। सीहोर में डीएफओ रहते समय उनके खिलाफ लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था और उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 468, 471, 120 (बी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7,13 (a)1, 13(b) के तहत मामला दर्ज किया गया था। सामान्य प्रशासन विभाग के नियमों के अनुसार इस तरह के गंभीर मामलों के आरोपी को किसी अन्य विभाग में प्रतिनियुक्ति पर नहीं भेजा जाता। लेकिन मुख्यमंत्री की जानकारी मे यह तथ्य लाये बिना मनोज अग्रवाल को उद्यानिकी विभाग में प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया। इतना ही नहीं, मनोज अग्रवाल की कार्यशैली और व्यवहार को लेकर विभाग के अधिकारी कर्मचारी भी काफी नाराज थे और उन्होंने कई बार इसकी शिकायत आला अधिकारियों से की थी। हालांकि इस मामले में सबसे बड़ा सवाल अब यही उठ रहा है कि जब भ्रष्टाचार के आरोपी मनोज अग्रवाल हैं तो मामले की जांच करने वाली प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव आखिरकार किस कारण से बलि पर चढ़ाई गई।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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