Farmers Protest : इंदौर पहुँची किसान आंदोलन की लपटें, अन्नदाताओं के साथ मेधा पाटकर का प्रदर्शन

Pooja Khodani
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इंदौर, आकाश धोलपुरे। कृषि विधयेक बिल (Agricultural bill)का विरोध भले ही दिल्ली (Delhi) और उसके आस पास चल रहा है लेकिन अब किसानों (Farmers) द्वारा किये जा रहे विरोध का असर मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में भी देखने को मिल रहा है। इंदौर (Indore) में आंदोलन में किसान संघर्ष समन्वय समिति की वर्किंग ग्रुप सदस्य नर्मदा बचाओ आंदोलन (Narmada Bachao Andolan) की नेता मेधा पाटकर (Medha Patkar) भी शामिल हुईं। पाटकर ने कहा कि ये तीनों कानून गलत आधार पर बने हैं। ये कानून उनका उद्देश्य सिर्फ बिजनेस है और प्रॉफिट कमाना है, हमें यह कानून मंजूर ही नहीं है।

दरअसल, किसानो द्वारा केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए बिल को काला कानून बताया जा रहा है। ऐसे में किसान आंदोलन के समर्थन में इंदौर मे गुरुवार दोपहर को रीगल चौराहे पर बडी संख्या में किसान (Farmers) पहुंचे। किसानों की माने तो किसान आंदोलन को लोगों का ऐतिहासिक समर्थन मिल रहा है। किसान आंदोलन (Farmers Protest) से एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए और किसान विरोधी तीनों कानून को वापस लेने की मांग करते हुए इंदौर में प्रदर्शन किया और धरना देकर विरोध जताया।

इंदौर में आंदोलन में किसान संघर्ष समन्वय समिति की वर्किंग ग्रुप सदस्य नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर भी शामिल हुईं। पाटकर ने कहा कि कॉर्पोरेटीकरण मध्यप्रदेश भुगत चुका है और देश का भी हर क्षेत्र में भुगत रहा है। काले कानून के दौरान अंबानी, अडाणी जैसे कॉर्पोरेट इस क्षेत्र में घुसेंगे तो वे खेती को भी बर्बाद कर देंगे। ये कार्पोरेट वाले जितना नुकसान करेंगे, उतना नुकसान तो कोई वायरस या जंगली जानवर भी नहीं करता। कॉर्पोरेटीकरण खतरनाक वायरस है। वही उन्होंने कहा कि मुनाफा खोरी, जमाखोरी में लूट की छूट दी जा रही है, लेकिन मिनिमम समर्थन मूल्य की कोई बात इस कानून में नहीं है। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के तहत नई जमीनदारी, जिसकी देश में आज चल रही है, वह खींच लेगा तो आम जनता की अन्न सुरक्षा, राशन व्यवस्था और फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का कारोबार सबकुछ खत्म हो जाएगा और ये ही बाते अफ्रीकन देशों और दक्षिण अमेरिकन देशों ने भुगती है।

जल, जंगल, जमीन के मालिक किसानो पर सरकार के दबाव को लेकर मेधा पाटकर ने कहा कि दबाव वे कैसा भी बनाएं, वहां तो लंगर लगे हुए हैं। 40 से 50 हजार लोग दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। सिंधु बार्डर पर तो एक लाख से ज्यादा संख्या पहुंच गई है अभी तो लगातार अन्य राज्य के लोग वहां पहुंच रहे हैं। पाटकर ने बताया कि हम यहां से 22 नंवबर को आंदोलन में शामिल होने निकले थे। यूपी बॉर्डर पर हमें रोका गया। बारिश के बाद भी हम दो दिन और दो रात तक हाईवे पर ही पड़े रहे। उन्हें बार्डर खोलना पड़ा, जिसके बाद हम दिल्ली तक पहुंचे। ये तीनों कानून गलत आधार पर बने हैं। ये कानून उनका उद्देश्य सिर्फ बिजनेस है और प्रॉफिट कमाना है, हमें यह कानून मंजूर ही नहीं है।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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