Guru Purnima Special: गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरे देश में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस शिष्य अपने जीवन में गुरु द्वारा मिले हुए मूल्यों और कर्तव्यों के लिए अपने गुरु के प्रति आभार जताते हैं। मध्य प्रदेश में भी एक ऐसी जगह मौजूद है, जहां पिछले 93 साल से गुरु शिष्य परंपरा का पालन किया जा रहा है। गुरु पूर्णिमा के मौके पर यहां देश विदेश से लाखों अनुयायी पहुंचते हैं और अपने गुरु को नमन करते हैं।
हम बात कर रहे हैं खंडवा में स्थित धूनीवाले दादाजी मंदिर की। दादाजी का भक्तों के बीच जो स्थान है वो उसी समान है जिस प्रकार साई बाबा को भक्त पूजते हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर यहां 3 दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए लाखों भक्त पहुंचते हैं। सब से खास बात ये है कि आने वाले श्रद्धालुओं की पूरा शहर आवभगत करता है। आज हम आपको इस जगह के इतिहास और महत्व से रूबरू करवाते हैं।
कैसे बना धूनीवाले दादाजी का मंदिर
जानकारी के मुताबिक यह संतों का एक अखाड़ा था जो देशाटन करते हुए खंडवा पहुंचा और यहां पर पड़ाव डाला। कुछ दिनों बाद ही दादाजी यहां समाधि में लीन हो गए और समय के साथ उनके शिष्यों ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कर दिया। उसी के बाद से इसे धूनी वाले दादाजी के मंदिर के नाम से पहचाना जाने लगा। गुरु शिष्य परंपरा की अनोखी मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में दुनिया भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां ना तो कोई पंडे पुजारी की व्यवस्था है और ना ही यहां द्वार कभी बंद किए जाते हैं। समाधि के सामने एक धूनी जलती है जिसमें सबकुछ स्वाहा कर दिया जाता है।
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मंदिर में है दो समाधि
खंडवा के इस मंदिर में दो समाधि हैं। एक केशवानंद महाराज और दूसरे उनके शिष्य भाई हरिहरानंद महाराज की है दोनों ही अवधूत संत थे। 1930 में केशवानंद महाराज ने समाधि ली थी, वह मां नर्मदा के अनन्य भक्त थे और हमेशा अपने साथ एक धूनी जलाकर रखते थे इसलिए उन्हें धूनीवाले दादाजी कहा जाता है। उनके समाधि लेने के बाद से यह धूनी लगातार उनके सामने प्रज्वलित हो रही है। 1941 में यहां उनके शिष्य और छोटे भाई ने भी समाधि ले ली थी।
हर मन्नत होती है पूरी
धूनी वाले दादाजी के अनुयायी देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैले हुए हैं और गुरु पूर्णिमा के मौके पर सभी अपनी मुरादे लेकर मंदिर में पहुंचते हैं। देश के अलग-अलग राज्यों से कई समूह यहां सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए आते हैं और निशान अर्पित करते हैं। भक्तों का कहना है कि पैदल यात्रा में धूनी वाले दादाजी उनकी रक्षा करते हैं और उनकी सारी मुरादें पूरी करते हैं।
24 घंटे खुले रहते हैं द्वार
पूरे देश में खंडवा का यह मंदिर ही इकलौता ऐसा स्थान है, जो 24 घंटे भक्तों के लिए खुला रहता है। यहां पर कोई पंडा या पुजारी नहीं है। आने वाले भक्तों स्वयं अपने हाथों से चादर चढ़ाते हैं, दर्शन करते हैं और प्रसाद लेकर चले जाते हैं।
दादाजी की समाधि के सामने जल रही उनकी धूनी को ही शक्ति माना जाता है और सब कुछ इसमें स्वाहा कर दिया जाता है। सूखा नारियल इसमें चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है। 93 सालों से निरंतर जल रही ये धूनी लाखों लोगों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। इससे निकलने वाली भभूत लोग प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं।
नि:शुल्क हैं सेवाएं
इस मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए खंडवा के स्थानीय रहवासी निस्वार्थ भाव से सेवा करते हुए दिखाई देते हैं। शहर के प्रमुख बाजारों और मार्गो में 200 से ज्यादा भंडारे आयोजित किए जाते हैं। रिक्शा, बस, डॉक्टर, कुली, धर्मशाला, मेडिफल फैसिलिटी कुछ मुफ्त में उपलब्ध होता है। यहां तक कि लोग अपने घर के खाली कमरे श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए खोल देते हैं। श्रद्धालुओं के लिए सब कुछ मुफ्त में उपलब्ध कराने की परंपरा केवल खंडवा में ही देखी जाती है और देश में यह एकमात्र ऐसा शहर है, जहां 3 दिन सराफा बाजार बंद रहता है।
धूनी वाले दादाजी के दर्शन करने आने वाले भक्तों के लिए यहां के शिष्यों द्वारा कुछ नियम भी बनाए गए हैं, जिनका पालन करना जरूरी है। मंदिर में आने वाले भक्तों अपने साथ चमड़े की वस्तु लेकर नहीं आ सकते हैं और प्रसाद के रूप में यहां भक्तों को टिक्कड़ और चटनी दी जाती है।