खंडवा, सुशील विधानी। खंडवा (khandwa) में दो बच्चियां मिली हैं जो घरवालों से परेशान हो कर आजमगढ़ (azamgarh) से खंडवा भाग आई हैं। किस्मत का लेखा कब, कैसे और कहां पलट जाए, कोई नहीं जानता! यह दुनिया दुख और सुख भरी है। कभी किसी की जिंदगी में उजाला ही उजाला दिखता है। तो कभी अंधेरगर्दी मच जाती है। दादाजी की नगरी खंडवा इन मासूम बच्चियों को अपने पास खींच लाई, जिन पर दुखों का पहाड़ लंबे समय से टूट रहा था। अपने ही उन्हें दर्द दे रहे थे। बस उनका कसूर यह था कि उनके माथे से मां बाप (parents) का साया उठ चुका था। वे बड़े भैया तथा भाभी के रहमो करम पर पल रही थी।
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जब ज्यादती की हद हो गई तब भाभी के परेशान करने पर आजमगढ़ में रहने वाली इन 10 और 12 वर्ष की दो बच्चियों ने यहां से भाग जाना ही बेहतर समझा, तो वे ट्रेन में बैठकर निकल लीं। पता नहीं क्या सोचकर वे खंडवा स्टेशन पर उतरीं। और मंदिर के पास घूमते हुए मिलीं।
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उस क्षेत्र के पार्षद और समाजसेवी सुनील जैन तक यह खबर पहुंची। इन बच्चियों के संरक्षण का रेस्क्यू शुरू हो गया। तुरंत प्रशासन को सूचना दी गई। वन स्टॉप सेंटर वालों को बुलाकर इन्हें वहां ले जाया गया। प्रशासन भी कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई करेगा, लेकिन दोनों बच्चियां आजमगढ़ की रहने वाली बता रही हैं। वे अपना नाम भी बता रही हैं। भाभी के द्वारा परेशान करने का विवरण भी देती हैं। उनका कहना है कि वहां से परेशान हो गए थे, इसलिए रेल में बैठ गए। इस शहर में दोनों उतर कर पैदल ही चल दिए। पुलिस प्रशासन द्वारा एमएलसी करवाकर दोनों बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया। जहां समिति सदस्य नारायण बाहेती, विजय सनावा, मोना दफ्तरी ने आदेश बनाकर बालिकाओं को वन स्टाप भेजा।