बीमारी का कारण क्यों बन रहा शुद्ध जल..?

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खंडवा| सुशील विधानी। इन दिनों शहर से अंचल तक पानी का कारोबार बिना लाइसेंस व रजिस्ट्रेशन के चल रहा है। घर, दुकान, अस्पताल, कार्यालय हर जगह आपको आरओ वाटर के गैलन देखने को मिल जाएंगे। गैलेन में शुद्ध पानी का लेबल चिपकाकर, पूरा फायदा ये अवैध प्लांट संचालक उठा रहे हैं और धड़ल्ले से पानी बेचा जा रहा है, जो स्वास्थ्य के साथ साथ सीधे अंडरग्राउंड वाटर लेवल को नुकसान भी पहुंचा रहा है. लेकिन इस तरह से हो रहे जल दोहन पर सरकारी महकमा कुंभकर्णी नींद सोया हुआ है। इतना ही नहीं शुद्ध पानी के लिए आरओ प्लांट में 70 प्रतिशत पानी बर्बाद होता है, जल दोहन का सबसे बड़ा कारण बने अवैध आरओ प्लांट बिना परमीशन जिले के कोने-कोने में फैल चुकेहैं। इनके रजिस्ट्रेशन की बात की जाए तो किसी विभाग को नहीं पता कि इन्हें लाइसेंस कौन दे रहा है, सभी एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ेंगे। पानी हर बीमारी का कारण बनता है। स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए ही लोग अब आरओ वाटर को ही अपनी दिनचर्या में शामिल करते जा रहे हैं लेकिन आरओ प्लांट से निकलकर घरों तक पहुंचने वाला पानी कितना शुद्ध है, इसकी कोई जांच नहीं होती है। शहर में पनप चुके वाटर सप्लायर्स आरओ तकनीक के नाम पर साधारण पानी को ही ठंडा कर गैलन से सप्लाई कर रहे हैं। साफ और ठंडे पानी की बढ़ती मांग को देखते हुए शहर सहित गांव-गांव में घरों में आरओ प्लांट लगवाये गए हैं। यहीं नहीं पाउच का भी निर्माण धड़ल्ले से हो रहा है, कई बार बदबूदार पानी पाउच भी उपभोक्ताओं को धमा दिया जाता है। गर्मी में खपत दो से चार गुना हो जाती है, जिसका पूरा फायद उठाया जा रहा है।

जनता को परोसे जा रहे पानी की जांच क्यों नहीं…

मिली जानकारी के अनुसार गत माह जिला कलेक्टर द्वारा आरओ वाटर की जांच पीएचई विभाग की लेब से करवाई गई थी। जिसमें सप्लायर्स निर्मल नीर का पानी ओके पाया गया। अब सवाल यह उठता है कि शहर से गांवों तक जनता को परोसे जा रहे पानी की जांच कौन कराएगा। जिलेभर में आरओ वाटर सप्लायर्स शीतल जल, अमृत जल, आरोग्य जल, कंठ सरोवर, शिव जल, हिम जल, महाजल, कश्मीर जल, एकबा जल, कृष्णा जल, वंदना जल, रेवा जल, संपूर्ण जल, जीवन जल, सागर जल, वैष्णव जल, युनिक जल, खंडवा गोल्ड, राजश्री, सर्वजल आदि के नाम आरओ वाटर परोसा जा रहा है, यह पानी भी शुद्धता की कसौटी पर खरा उतर रहा है या नहीं?

लाइफस्टाइल का हिस्सा बना आरओ वाटर….

आरओ (रिवर्स आस्मोसिस) वाटर, मतलब पूरी तरह से शुद्ध पानी। आरओ को लेकर यही सोच अपना ली है हमने और इसे अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बना लिया है। बिना ये सोचे-समझे कि आरओ की जरूरत हमें है भी या नहीं। आज आरओ सिस्टम स्टेटस सिंबल बन गया है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार बोतलबंद पानी या आरओ पानी लंबे समय तक पीने से आपके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। आरओ पानी को फिल्टर करते समय अच्छे और बुरे दोनों ही मिनरल्स को निकाल देता है। मशीन को अच्छे-बुरे मिनरल्स की पहचान नहीं होती। वह पानी से जरूरी मिनरल्स को भी हटा देती है। यही कारण है कि दुनिया के कई देशों में इस पर प्रतिबंध लग चुका है। आरओ की प्रक्रिया के बाद पानी से बैक्टीरिया के साथ जरूरी खनिज कैल्शियम और मैग्नीशियम 90 से 99 प्रतिशत तक खत्म हो जाते है। क्लोरीनेशन से पानी का बैक्टिरिया खत्म होता है, लेकिन पानी की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं।

यह है टीडीएस…

टीडीएस अर्थात टोटल डिसाल्व्ड सालिड्स (कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, बाइकार्बोनेट्स, सल्फेट्स और क्लोराइड्स) इम्यूनिटी सिस्टम होता है मजबूत….जानकारों का कहना है कि प्राकृतिक जल में मिनरल्स होते हैं। इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत रहता है। आरओ सिस्टम के कारण पानी से मिलने वाले जरूरी मिनरल्स की मात्रा में कमी के साथ ही इम्यूनिटी भी कमजोर हो रही है। बहुत कम उम्र में ही हड्डी और एलर्जी से संबंधित समस्याएं नजर आने लगी हैं। ये पानी में मौजूद कैल्शियम को भी कम कर हड्डियां खोखली करने लगा है। अक्सर देखा भी गया है कि मरीज को आरओ वाटर के स्थान पर नार्मल प्युरीफायर का पानी, क्लोरीन या फिर उबला हुआ पानी पीने की सलाह देते हैं। पहले, वाटर प्युरीफायर कैल्सीफाइड होते थे, लेकिन अब बचपन से ही आरओ वाटर के उपयोग से हड्डी से संबंधित बीमारियां घेर सकती है।


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