MP Tourism: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन को श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली के नाम से भी पहचाना जाता है। यहां पर कन्हैया ने अपने बड़े भाई बलराम के साथ महर्षि सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने के लिए पहुंचे थे। यहां एक ऐसी जगह भी मौजूद है, जहां पर श्री कृष्ण की मुलाकात अपने प्रिय मित्र सुदामा से हुई थी।
कृष्ण सुदामा के मैत्री स्थल नारायणा से एक किलोमीटर दूर उत्तर दिशा की ओर स्वर्णगिरी पर्वत मौजूद हैं। इस जगह का विशेष महत्व है और कहा जाता है भगवान यहां अपनी गुरुमाता की आज्ञा से लकड़ियां एकत्रित करने आए थे। माता पार्वती ने सप्तऋषियों को प्रसन्न करने के लिए यहां पर तपस्या की थी। यही कारण है कि इस जगह का काफी महत्व है और इसकी परिक्रमा से गिरिराज जी पर्वत परिक्रमा का फल मिलता है।
पर्वत के पत्थर करते हैं घंटी की आवाज
मान्यताओं के मुताबिक जैसे ही श्रीकृष्ण के पैर इस पर्वत पर पड़े थे, ये स्वर्ण की तरह दमक उठा था। बताया जाता है कि आज भी वर्ष में एक बार ये एक पल के लिए सोने का बन जाता है। इस पर्वत के पत्थर जब आपस में टकराते हैं, तो घंटी की ध्वनि उत्पन्न होती है। कृष्ण भक्ति में डूबे संत और भक्त वर्षभर यहां पर पहुंचते हैं।
दामोदर कुंड से यात्रा
हर साल इस पर्वत तक यात्रा का आयोजन किया जाता है। नारायणा के दामोदर कुंड से जल लेकर भक्त 5 कोस को यात्रा कर यहां पहुंचते हैं। इसके पश्चात पार्वती धाम में माता पार्वती का जलाभिषेक किया जाता है। सोमवती अमावस्या पर इस पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है।
माता पार्वती का जलाभिषेक करने के बाद ये यात्रा पुनः यहां से प्रस्थान करती है। पार्वती माता मंदिर परिसर में मौजूद गौरी कुंड से फिर से जल भरा जाता है और यात्रा वापस नारायणा धाम पहुंचती है जहां दामोदर कुंड में विराजित श्री कृष्ण ईश्वर महादेव का गौरी कुंड के जल से अभिषेक किया जाता है। इसके पश्चात यह यात्रा संपन्न होती है।
(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)