Neemuch News : मध्यप्रदेश के नीमच में प्रत्येक शनिवार व रविवार को झुग्गी बस्तियों में ‘अपनी पाठशाला’ लगाई जा रही है। जिसमें कचरा बीनने, भीख मांगने वाले बच्चें शिक्षित हो रहे हैं। अब शहर के शिक्षकों की टीम ने इन बच्चों के जीवन को सुधारने का बीड़ा उठाया है। महिला बाल विकास वन स्टॉप सेंटर पर कार्यरत पूजा शिक्षक शबनम खान, सीआरपीएफ स्कूल की शिक्षक प्रीतिबाला निर्मल, पर्यावरण प्रेमी किशोर बागड़ी, एमपी ऑनलाइन संचालक नवनीत, सोशल विषय के प्रोफेसर अनूप चौधरी सहित कई लोगों की टीम हर शनिवार-रविवार दो से तीन घंटे झुग्गी बस्तियों में जाकर उनके घर के आसपास ही बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे हैं। आइए जानें विस्तार से…
अपने कर्म से बच्चों को दे रहे नया जीवन
आज के समय में शिक्षा व्यवसाय बन गया है लेकिन अभी भी कई शिक्षक ऐसे हैं जो अपने कर्म से बच्चों को नया जीवन देने में हैं। इसी तरह कई शिक्षकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की टीम प्रत्येक शनिवार व रविवार को झुग्गी बस्तियों में जाकर कचरा बीनने, भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही है। यह टीम शहर की दो झुग्गी बस्तियों के 40 बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा दे रही है। बच्चों कि शिक्षा में रुचि बनाए रखने के लिए हमेशा अलग-अलग तरह का नाश्ता भी ले जाते हैं। शिक्षा के साथ शिक्षक इन्हें सूर्य नमस्कार, योग, प्रणायाम भी सिखा रहे हैं, जिससे बच्चे स्वस्थ रह कर अच्छे काम कर सके।
तीन बच्चों के साथ शुरू की थी कक्षा लगाना
वर्तमान में स्कीम नंबर 36 बी उत्कृष्ट स्कूल के पास एवं निरोगधाम के सामने झुग्गी बस्तियों में ओपन कक्षा लगाई जा रही है। इन्होंने कोरोना के बाद दो- तीन बच्चों के साथ कक्षाओं लगाने की शुरुआत की। आज इनकी ओपन कक्षाओं में लगभग 40 बच्चे पढ़ाई करने आते हैं। बता दें यहां बच्चों को अंग्रेजी, हिंदी, गणित का ज्ञान दिया जा रहा है।
बच्चों को कराया जाता है नाश्ता
इसके अलावा, बच्चों में शिक्षा के लिए रुचि पढ़ाई में बनी रहे और सभी कक्षाओं में आए शिक्षकों की टीम द्वारा शनिवार- रविवार को अलग-अलग तरह का नाश्ता भी कराया जाता है। शिक्षक इनके लिए खिचड़ी, आलू बड़ा, पोहा जैसे अलग-अलग तरह का नाश्ता ले जाते हैं। इस कार्य में पायल जैन,रौनक दुग्गड़, भाग्य पांडे, नवनीतअरोन देकर सहित कई सदस्य अपनी सेवाएं देते हैं।
सब्जियों के नाम से सिखाई जा रही है पढ़ाई
किशोर बागड़ी, अनूप चौहान ने बताया कि कोरोना काल में गरीब बस्तियों में भोजन वितरण के दौरान बच्चे दिखे जो स्कूल नहीं जाते थे। इसे देखते हुए इन्हें शिक्षा देने का विचार आया। टीम ने उनके मध्य जाकर शिक्षा देने का निर्णय लिया। यह कार्य आसान नहीं था, पहले पालकों व बच्चों को मानसिक रुप से तैयार किया। प्रारंभ में दो तीन बच्चे ही आते थे लेकिन अब बच्चों को शनिवार व रविवार का इंतजार रहता है। खुले में ब्लैक बोर्ड लगा कर इन्हें ए, बी, सी, डी, अनार, आम, गणित सहित फल, फूल सब्जियों के नाम सिखाएं जा रहे हैं। कुछ से चित्रकारी भी कराते हैं। इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रूचि जाग रही है। इनमें से एक भी बच्चा पढ़ाई में आगे निकल जाएगा तो शिक्षकों की मेहनत सफल हो जाएगी।
नीमच से कमलेश सारडा की रिपोर्ट