बालाघाटः आधुनिकता में भी व्याप्त है रूढ़िवादी परंपरा, चंदा नहीं देने पर 14 परिवार का किया सामाजिक बहिष्कार

Gaurav Sharma
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बालाघाट,डेस्क रिपोर्ट। आधुनिकता के दौर में भी समाज अपनी रूढ़िवादी परंपरा से बाहर नहीं निकल पाया है। आज भी ग्रामीण स्तर पर समाज में रहने के लिए कई फैसलों को नहीं मानने पर समाज द्वारा बहिष्कार किए जाने का दंश झेलना पड़ता है। आज एक ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले से आया है, जहां लामता थाना क्षेत्र के मोतेगांव गोंड जनजाति के 14 परिवारों को दुर्गोत्सव में चंदा नहीं देना भारी पड़ गया और उनके परिवार का सामाज से बहिष्कार कर दिया गया।

आज भी व्याप्त है रूढ़िवादी कुरितियां

जी हां आज भी ये सारी कुरितियां समाज में बरकरार है, जहां 200 रुपए का समर्थन करने में असमर्थ परिवार को पिछले को दो सप्ताह से सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। जिससे परेशान पीड़ित परिवारों ने एएसपी को ज्ञापन देते हुए न्याया की मांग की है।

ये है पूरा मामला

बताया जा रहा है कि दुर्गोत्सव के लिए समिति द्वारा हर घर से 200 रुपए का चंदा वसूल किया जा रहा था। जिसके लिए लामता गांव में एक बैठक बुलाई गई थी। जिसमें ये निर्णय लिया गया था, लेकिन लॉकडाउन के कारण कुछ परिवारों की स्थिति अच्छी नहीं है, जिसके कारण इन 14 परिवारों ने 100 रुपए चंदा देने की बात कही। जिसे मना कर दिया गया और सीधे समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। वहीं गांव में इन 14 परिवारों के राशन खरीदने और कहीं भी काम पर जाने को लेकर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। जिससे परेशान परिवारों ने जिला प्रशासन से बात की, लेकिन उनके द्वारा भी कोई कार्य नहीं किया गया।

चंदा नहीं देना परिवार को पड़ा मंहगा

वहीं चंदा नहीं दे पाने के कारण लामता गांव से 14 लोगों को बहिष्कृत किया गया है, जिन्होंने बताया कि समाज द्वारा बहिष्कार करने के बाद ना कोई ग्रामीण उनसे बात करेगा और ना ही कोई उन्हें काम और राशन देगा। करीब दो हफ्ते से ज्दाया का समय बीत गया है, लेकिन अब उन्हें किसी प्रकार का राशन और काम नहीं दिया जा रहा है। जिससे परेशान होकर सभी ने एएसपी से न्याय की गुहार लगाई है।

वहीं पीड़ित परिवारों द्वारा ज्ञापन सौंपे जाने के बाद जांच एसडीओपी को दी है। जिन्होंने कहा कि जांच में जो भी तथ्य सामने आएगा, उसी के अनुसार आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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