सतना के सपूत का हुआ अंतिम संस्कार, सीएम शिवराज ने किया एक करोड़ और सरकारी नौकरी देने का एलान

Gaurav Sharma
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सतना, पुष्पराज सिंह बघेल। शहीदों की चिताओं पर लगे गे हर वरस मेले वतन पर मिटने वालो का यही बाकी निशां होगा।जगदंबा प्रसाद मिश्र की ये पंक्तियां एक बार फिर विन्ध्य के सपूत को नमन कर रही है। सतना जिले के राम पुर बघेलान तहसील के छोटे से गांव पड़िया में जन्मे शहीद धीरेंद्र ने अपनी शहादत से न सिर्फ अपना नाम इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करवा लिया है, बल्कि इस छोटे से गांव को शहादत का बड़ा दर्जा दे डाला है।

सोमवार को पुलवामा जिले के कंधीजल में आतंकी हमले में शहीद हुए धीरेंद्र त्रिपाठी का पार्थिव शरीर आज लखनऊ के कमांडेंट की अगुवाई में 31 सीआरपीएफ जवानों के साथ सतना जिले के गृह ग्राम पड़िया लाया गया, जहां विन्ध्य के लाल के लिए श्रद्धा के पलक पावड़े बिछाकर न सिर्फ घर परिवार के लोग मौजूद रहे बल्कि आसपास के गांव और जिले के लोगों का तांता लगा रहा। परिजनों का अपने लाल के लिए रो रो कर बुरा हाल था तो वही गांव मे चारो  तरफ पाकिस्तान मुर्दाबाद और अमर सहीद धीरू जिंदाबाद के नारे लगे। गांव मे श्रद्धांजलि देने वालों का मेला लग चुका था। सहीद को अंतिम विदाई देने के लिए हर कोई आगे था। सीआरपीएफ की टीम के साथ प्रशासनिक कंधे भी आगे आये। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह भी श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। प्रदेश के मुखिया ने सहीद के परिवार के साथ खड़े होने की बात कही, साथ ही मुख्य मंत्री शहीद की पत्नी को अकेले पड़िया गांव की बेटी नही बल्कि प्रदेश की बेटी है संबोधित करते हुते कहां कि हम उन्हें वापस तो नहीं ला सकते, लेकिन उनकी कमी परिवार को नहीं होने देंगे। श्रद्धा और सम्मान निधि के रूप में मुख्य मंत्री ने एक करोड़ रुपये और शासकीय नोकरी देने की बात कहीं है।

शहीद धीरेंद्र सीआरपीएफ का जवान थे। उनकी बटालियन श्रीनगर में तैनात थी। सोमवार को आतंकियों ने फिर पुलवामा पर हमला किया, जिसमें भारतीय सेना के 2 जवान शहीद हो गए थे। शहीद जवानों में सतना का लाल धीरेंद्र त्रिपाठी शहीद हो गए । वीर सपूत धीरेंद्र के पिता बालाघाट में पदस्थ हैं। गौरतलब है कि इसके पूर्व चीन की सेना के साथ हुई झड़प में पिछले दिनों ही विंध्य के रीवा जिले के फरहद गांव का एक बहादुर बेटा शहीद हुआ था। शहीद धीरेन्द त्रिपाठी के पिता का नाम राम कलेश त्रिपाठी है और मां का नाम उर्मिला त्रिपाठी है।पत्नी का नाम साधना है। शहीद का एक 3 साल का बेटा है, जिसने पिता को मुखग्नि दी। धीरेंद्र ने अक्टूबर 2010 को सीआरपीएफ में चालक के पद पर सेवा शुरू की थी। 7 सितंबर 2020 को अवकाश से वापस जाकर पुलवामा पोस्टिंग में आमद दिया था। शहीद जवान के पिताजी भी सीआरपीएफ में सूबेदार के पद पर बालाघाट में पदस्त हैं।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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