जब सिक्कों से भरा बोरा लेकर जा पहुंचा युवक स्कूटी के शोरूम

Gaurav Sharma
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शहडोल डेस्क रिपोर्ट। शहडोल जिले में एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां एक युवक स्कूटी खरीदने के लिए सिक्कों से भरा बोरा लेकर शोरूम पहुंच गया। शोरूम संचालक ने भी युवक की भावनाओं को समझते हुए सिक्कों को स्वीकार कर उसे स्कूटी दे दी।

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शहडोल के होन्डा शोरूम के संचालक उस समय हैरान हो गए जब सुबह सुबह एक युवक एक बोरा घसीटते हुए शोरूम के अंदर आया। पूछने पर युवक ने बताया कि बोरे में सिक्के भरे हैं और वह स्कूटी खरीदने आया है। सोहागपुर का रहने वाले अजीत द्विवेदी नामक युवक के परिवार में खानदानी पंडिताई होती है और यह सिक्के उसे भगवान पर चढ़ावे में मिले थे। युवक का कहना है कि उनके पास 25000 रू के सिक्कों की चिल्लर इकट्ठी हो गई थी जिसे लेकर वह होंडा शोरूम में स्कूटी खरीदने आया है। युवक के पास 1 और 2 रू की चिल्लर थी जिसे वह बाइक पर रखकर आया था। हौंडा शोरूम के संचालक राजकुमार ने भी युवक की भावनाओं को समझते हुए चिल्लर स्वीकार की और कहा कि भारतीय मुद्रा हर रूप में स्वीकार है। हालांकि शोरूम के कर्मचारियों को स्कूटी बेचना महंगा पड़ा क्योंकि सिक्कों को गिनने में कम से कम तीन घंटे का समय लग गया। लेकिन युवक की भावनाओं को सर्वोपरि रखते हुए उन्होंने यह काम बड़ी मेहनत से किया। शोरूम संचालक का कहना है कि यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी संख्या में कोई सिक्के लेकर खरीदारी करने आया है। अभी तक ज्यादा से ज्यादा दो या तीन हजार रू तक की राशि के सिक्कों लेकर लोग आए हैं। बहरहाल यह पूरा मामला शहडोल शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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