Shahdol News : मध्य प्रदेश के शहडोल जिला में सुरों के सम्राट मोहम्मद रफ़ी की 100वीं जयंती मनाई जाएगी। इस खास मौके पर “एक शाम रफ़ी के नाम” कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान जहां रफी साहब को श्रद्धांजलि दी जाएगी, तो वहीं सुर व ताल के अद्भुत संगम का नजारा भी देखने को मिलेगा।
इस कार्यक्रम का आयोजन मानस भवन में किया जाएगा, जहां 24 दिसंबर को शाम 6:00 बजे से रात 9:30 तक सुरों की महफिल सजेगी। इसके लिए अभी से ही तैयारी शुरू कर दी गई है।
संगीत प्रेमियों से की गई अपील
कार्यक्रम के दौरान मोहम्मद रफ़ी के अनमोल गीतों को पेश किया जाएगा। आयोजक द्वारा सभी संगीत प्रेमियों को इस आयोजन में शामिल होने और यादगार बनाने की भी अपील की गई है। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य उनकी संगीत विरासत को जीवंत रखना है, इसलिए उनकी जयंती को भव्य तरीके से मनाने का प्रयास किया जा रहा है। “एक शाम रफ़ी के नाम” के माध्यम से आयोजक रफ़ी साहब के उन अनमोल गीतों को प्रस्तुत करेंगे, जिन्होंने हर पीढ़ी के दिलों को छुआ है। इस दौरान बहुत सारे अधिकारी मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे।
मधुर आवाज का जादू
मोहम्मद रफ़ी की आवाज ने न केवल बॉलीवुड, बल्कि पूरे भारतीय संगीत जगत को नया आयाम दिया था। उनकी मधुर आवाज का जादू हर किसी के दिल को छू लेता था। उनके सदाबहार गाने आज भी लोगों की जुबां पर चढ़कर बोलता है। समय के साथ-साथ गानों के सुर और ताल में बहुत सारे बदलाव देखने को मिले हैं, लेकिन रफ़ी साहब के गाने आज भी लोगों को काफी पसंद आते हैं। चाहे रोमांटिक गाना हो, भक्ति संगीत हो, गजल हो, देश भक्ति के नगमे हो या फिर हास्य गीत हो… मोहम्मद रफ़ी ने हर शैली में अपनी छाप छोड़ी है। भारतीय बॉलीवुड में उनकी गायकी का हर कोई सम्मान करता है।
उन्होंने “चौदहवीं का चांद”, “क्या हुआ तेरा वादा”, “मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया”, और “आज पुरानी राहों से” जैसे सदाबहार गाने गए हैं। करियर के दौरान उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्म फेयर अवार्ड मिल चुके हैं। इसके अलावा, भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया था।
1980 में हुआ था निधन
वहीं, रफ़ी साहब ने 31 जुलाई 1980 को दुनिया से अलविदा कह दिया था। उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ था। उनकी मौत ने फिल्म इंडस्ट्री को बड़ा झटका पहुंचाया था। उनके अंतिम संस्कार में लाखों लोग उमड़े थे। आज भी उनके गाने संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं।
शहडोल, राहुल सिंह राणा