भोपाल डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश (Madhyapradesh) के महिला बाल विकास विभाग (Women and Child Development Department) के आला अधिकारियों ने सरकार की जमकर किरकिरी कराई। पिछले एक हफ्ते में तीन ऐसे मौके आए हैं जब सरकार को बैकफुट पर जाना पड़ा है और उसकी वजह बनी है कि इन अधिकारियों ने सरकार के सामने सही पक्ष रखी नहीं पाया। मध्यप्रदेश का महिला बाल विकास विभाग इन दिनों सुर्खियों में है और राष्ट्रीय स्तर पर इस विभाग के कार्यकलापों की आलोचना हो रही है। जहां दो दिन पहले कांग्रेस ने महिला बाल विकास विभाग में हुए पोषण आहार घोटाले को लेकर चार अलग-अलग बड़े शहरों में प्रेस कॉन्फ्रेंस की वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने भी शिवराज सरकार पर हमला बोल दिया।
आधार बनी लेखा परीक्षक की वह रिपोर्ट जिसमें अप्रैल 2018 से लेकर 2021 तक मध्य प्रदेश में पोषण आहार वितरण पर सवालिया निशान खड़े किए गए थे। हैरत की बात यह रही कि इस मुद्दे पर जोर शोर से शिवराज सरकार पर हमला बोलने वाले कांग्रेस के लोग यह भूल गए कि मध्य प्रदेश में नवंबर 2018 से लेकर मार्च 2020 तक कमलनाथ की कांग्रेस सरकार थी और उसने ही जनवरी 2019 में पोषण आहार का काम कर रही एस आर एल एम को एमपी एग्रो के तहत कर दिया था जो पोषण आहार माफियाओं के पूरी तरह नियंत्रण में थी और जिस की कार्यप्रणाली पर समय समय पर सवालिया निशान खड़े होते रहे थे।
लेकिन महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी वर्तमान सरकार के सामने इन सारे तथ्यों को सही ढंग से नहीं रख पाए जिसके चलते बुधवार को खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा को मोर्चा संभालना पड़ा और बताना पड़ा कि यह सारे क्रियाकलाप कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के हैं। दूसरा मामला किशोर न्यायालय में अंडा और चिकन की सप्लाई को लेकर आया इस मुद्दे पर जहां प्रदेश के गृहमंत्री और सरकार के प्रवक्ता डॉ नरोत्तम मिश्रा ने साफ कहा कि अंडे का फंडा मध्य प्रदेश में नहीं चलेगा लेकिन वहीं दूसरी ओर विभाग ने बाकायदा इसका प्रस्ताव बनाकर राजपत्र में प्रकाशित करा दिया यानि साफ तौर पर सरकार को इस पूरे मामले में भी अंधेरे में रखा गया जिसके चलते सरकार की अच्छी खासी किरकिरी हुई।
तीसरा मामला केंद्र सरकार के शो काज नोटिस के रूप में सामने आया जिसमें केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की उप सचिव रेशमा रघुनाथन नायर ने महिला बाल विकास विभाग के एसीएस अशोक शाह को 15 जुलाई को नोटिस भेजा और बताया कि मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री की फ्लैगशिप योजना पोषण अभियान में बड़ी लापरवाही हो रही है। तीन वर्ष से मध्यप्रदेश में छोटे बच्चों गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं का हर महीने डोर टू डोर सर्वे नहीं हुआ है। इसके चलते प्रदेश सरकार को मिलने वाले 21 करोङ रू का बजट लैप्स हो जाएगा।
विभागीय अधिकारियों ने इस बात को लेकर भी सरकार को विश्वास में नहीं लिया और आखिरकार यह बात मीडिया के माध्यम से फिर चर्चा में आ गई। इस सारी वाकये में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह विभाग मुख्यमंत्री के ही अधीन हैं और इस पूरे मामले मे विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक शाह और महिला बाल विकास विभाग के आयुक्त राम राव भोसले की कार्यप्रणाली को लेकर ही सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं कि आखिरकार इतनी बड़ी गलतियों के बाद भी उन्होंने सरकार को विश्वास में क्यों नहीं लिया।