170 किमी सायकिलिंग कर प्रभार लेने बालाघाट पहुंचे प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक

Atul Saxena
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बालाघाट, सुनील कोरे। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है, पर्यावरण सुरक्षित रहता है ये जुमले सभी ने बहुत बार लोगों को कहते सुना होगा, दीवारों पर और किताबों में लिखा देखा होगा लेकिन इसपर अमल करने वाले गिने चुने लोग ही होते हैं।  जो ना सिर्फ इसे अपनाते भी हैं और दूसरों को प्रेरित भी करते हैं।  ऐसे ही एक अधिकारी हैं प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक विकास माहुरे जिन्होंने 170 किलोमीटर साइकिलिंग कर बालाघाट में प्रभार लेने पहुंचे, वे सोमवार को प्रभार लेंगे ।

शासकीय सेवा में बड़े पदों पर हो तो वैसे ही शासन की ओर से उसे दी जाने वाली सुविधायें उसके लिए पर्याप्त होती हैं, फिर अधिकारी हो तो शासकीय वाहन तो आवश्यक है। आजकल तो अधिकारी वर्ग अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए भी शासकीय वाहन इस्तेमाल करता है, फिर वह बच्चों को स्कूल, कॉलेज छोड़ने जाना हो या फिर श्रीमती जी को बाजार जाना हो, शासकीय सुविधा का वाहन सुख मिल जाता है। लेकिन शासकीय सेवा में बड़े पदों पर रहने वाले ऐसे भी कुछ अधिकारी होते हैं जो अपने कार्यो से अपनी पहचान बनाते हैं।

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बालाघाट जिले में सहायक वन संरक्षक पद पर प्रशिक्षु अधिकारी बनकर पहुंचे विकास माहुरे, ऐसे ही बिरले अधिकारी में शामिल है, जिन्होंने अपने गृह शहर छिंदवाड़ा से बालाघाट तक की 170 किलोमीटर की यात्रा सायकिल से की। दो दिनों के सफर के बाद आज वह छिंदवाड़ा से सिवनी होते हुए बालाघाट पहुंचे।

170 किमी सायकिलिंग कर प्रभार लेने बालाघाट पहुंचे प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक

नवागत प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक विकास माहुरे के सायकिल से यात्रा करते हुए पदभार लेने पहुंचने पर वन अमले ने उनका स्वागत किया। इस दौरान प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक विकास माहुरे ने सायकिल यात्रा से पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीव सुरक्षा और स्वस्थ्य जीवन का संदेश दिया। छिंदवाड़ा से सिवनी होते हुए बालाघाट तक कुल 3 जिलों की सीमा के 170 किलोमीटर का सफर सायकिलिंग करते हुए पूरा किया। प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक विकास माहुरे इस समय प्रशिक्षण अवधि में है और उन्हें बालाघाट में प्रशिक्षण लेना है। इसी के चलते वे 01 दिन पहले अपने घर छिंदवाड़ा से साइकिल से सफर करते हुए दूसरे दिन आज सिवनी होती हुए बालाघाट पहुंचे 03 जिलों की दूरी को सायकिलिंग से पूरा करते हुए यहां पहुंचे थे। साइकिल से एक अफसर का यह सफर सभी के लिए कौतूहल का विषय रहा।

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सोमवार को संभालेंगे कार्यभार

अपने होम टाउन छिंदवाड़ा से बालाघाट प्रभार लेने पहुंचे प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक विकास माहुरे, सायकिलिंग करते हुए छिंदवाड़ा से सिवनी होते हुए 17 जुलाई को बालाघाट पहुंचे। यहां वन अमले ने सायकिलिंग करते हुए पहुंचे अपने अधिकारी का स्वागत किया और उन्हें शुभकामनायें दी। प्रशिक्षु वन अधिकारी सोमवार 19 जुलाई को अपना कार्यभार संभालेंगे।

पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीव सुरक्षा और हेल्थ के प्रति जागरूक रहे हम

सायकिलिंग करते हुए बालाघाट पहुंचे प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक विकास माहुरे ने बताया कि सायकिलिंग करते हुए बालाघाट पहुंचने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीव सुरक्षा और हेल्थ के प्रति जागरूक करना है। कोरोना कॉल ने हमें बताया कि हम हेल्थ से काफी कमजोर है और हम ऐसी बीमारियों का सामना करने के लिए फिट नहीं है। आगामी समय में परिस्थिति और खराब हो सकती है। जिसके लिए हमें तैयार रहते हुए हेल्थ को बनाये रखना होगा। वर्तमान में विभागीय अधिकारियों पर कार्य का दबाव है, तेज दौड़ने में आमजन की समस्या छूट जाती है चूंकि मेरे पास समय था तो मैं सायकिलिंग करते हुए बालाघाट पहुंचा। इस दौरान मैने देखा कि रास्ते में पक्षी, जानवर और कई प्रजाति के सांप मरे पड़े है, जो ओवर स्पीडिंग का नतीजा है। सुरक्षित हमें भी रहना है और जीव, जंतुओं और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखना है, ओवर स्पीडिंग से आमजन का फायदा तो नहीं है और नही जीव, जंतुओें का। हमें ओवर स्पीडिंग का ध्यान रखना होगा।

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उन्होंने कहा कि फारेस्ट डिपार्टमेंट में तो हमें पेट्रोलिंग करना है, हमें तो कहा जाता है कि जंगल में जितना पैदल चलेंगे, उतना नजदीकी से देख पायेंगे। मुझे हमेशा फिट रहना है इसलिए मैं हमेशा सायकिलिंग करूंगा। मेरी प्राथमिकता होगी कि मैं जनता के साथ जुड़ा रहूं और उनकी समस्या का निवारण कर सकूँ ।

बालाघाट के लौंगुर में ट्रेनी रेंजर के रूप में कार्य कर चुके है अधिकारी विकास

प्रशिक्षु अधिकारी बनकर बालाघाट पहुंचे सहायक वनसंरक्षक विकास माहुरे 2018 बैच के एसीएफ (असिस्टेंट कंजरवेटर ऑफ फारेस्ट) अधिकारी है। जिन्होंने देहरादून से ट्रेनिंग ली है। पहले वे बालाघाट के लौंगुर में ट्रेनी के रूप में रेंजर पद पर पदस्थ हुए थे। बाद में वे एसीएफ छिंदवाड़ा रहे अब उन्हें प्रशिक्षु सहायक वन संरक्षक के रूप में बालाघाट भेजा गया है। उनका मानना है कि हर व्यक्ति पर्यावरण के प्रति जागरूक रहे और वन एवं वन्यजीव की सुरक्षा के लिए बेहतर काम हो।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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