Sandipani Ashram Ujjain: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन को श्री कृष्ण की शिक्षास्थली के रूप में पहचाना जाता है। धर्म शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि उन्होंने यहां अपने भाई बलराम और दोस्त सुदामा के साथ गुरु सांदीपनि से शिक्षा हासिल की थी। जब आप यहां के आश्रम पहुंचेंगे तो आपको कृष्ण की बाल लीलाओं के दर्शन साक्षात करने को मिलेंगे। यहां वो स्थान भी मौजूद है जहां श्री कृष्ण बैठकर अपने गुरु से शिक्षा लेते थे, जहां वह अपनी पट्टी धोते थे। पर्यटन की दृष्टि से यह उज्जैन का काफी प्रसिद्ध स्थान है।
वेदों और पुराणों में उज्जैन का जो उल्लेख किया गया है, उसमें आश्रम के महाभारत काल के होने के कई प्रमाण मिलते हैं। जाहिर सी बात है श्रीकृष्ण ने महाभारत में अहम भूमिका निभाई थी और उन्होंने उज्जैन में शिक्षा हासिल की है इसका ये मतलब है कि वो यहां काफी पहले आए थे। अब यहां मिले पुराअवशेषों में भी महाभारत काल के प्रमाण मिले हैं।
खनन में मिले पुरावशेष
साल 2020 से लगाकर 2022 तक मध्य प्रदेश के पुरातत्व विभाग द्वारा सांदीपनि आश्रम क्षेत्र में खनन और सर्वेक्षण करवाया गया था। यहां से कई तरह की मूर्तियां प्राप्त हुई है, जिनके शिल्प को ध्यान से देखने पर इसमें कृष्ण काल जीवंत दिखाई देता है। सांदीपनी आश्रम से महाभारत कालीन जो पुराअवशेष प्राप्त हुए हैं, उनमें कटोरी, मटके, तस्तरी समेत उपयोग के बर्तन और उपकरण शामिल हैं।
इसके पहले से उज्जैन के त्रिवेणी संग्रहालय में दो दुर्लभ प्रतिमाएं भी मौजूद है। इनमें से एक मूर्ति माता यशोदा की है जो शेषशैया पर लेटी हुई हैं और उनके साथ नन्हे श्री कृष्ण नजर आ रहे हैं। अपने नटखट को दुलारते हुए माता यशोदा की यह मूर्ति काफी दुर्लभ है। दूसरी मूर्ति विश्व रूप की है और यह वही रूप है जो कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को दिखाया था। ये दोनों ही 10वीं शताब्दी की है।
शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केंद्र
बता दें की महाभारत काल में उज्जैन शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण जगह थी। 5266 वर्ष पुराने इस आश्रम की शुरुआत पूर्व द्वापर युग में की गई थी। यहां पर गुरु सांदीपनि की प्रतिमा के समक्ष चरण पादुका दिखाई देती है। साथ ही भगवान श्री कृष्णा, बलराम और सुदामा के बाल रूप अपने हाथों में पट्टी लिए बैठे दिखाई देते हैं। श्री कृष्ण की पट्टी पर जो तीन मंत्र लिखे हुए दिखाई देते हैं बताया जाता है कि इसी से उनका विद्या आरंभ हुआ था।
आज भी है गोमती कुंड
सांदीपनी आश्रम में वर्षों पुराना गोमती कुंड आज भी मौजूद है। बताया जाता है कि भगवान श्री कृष्णा अपनी स्लेट पर लिखे हुए अंको को मिटाने के लिए यहीं पर जाया करते थे। स्वयं श्री कृष्ण ने यहां अपनी पट्टी के अंकों को धोया था इसलिए इस क्षेत्र को अंकपात के नाम से जाना जाता है।