महाराष्ट्र कैडर के तेजतर्रार और ईमानदार माने जाने वाले आईएएस अधिकारी तुकाराम मुंढे एक बार फिर सुर्खियों में हैं। वजह है उनका 24वां ट्रांसफर। 2005 बैच के इस अधिकारी को असंगठित कामगार आयुक्त पद से हटाकर अब दिव्यांग कल्याण विभाग का सचिव बनाया गया है। यह बदलाव इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि यह विभाग आमतौर पर ‘कम महत्त्वपूर्ण’ समझा जाता है। लेकिन मुंढे की पहचान ऐसे अफसर की रही है, जो किसी भी पद पर जाकर उसे क्रियाशील और जनहितकारी बना देते हैं। ट्रांसफर का यह लंबा सिलसिला सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं, यह एक अफसर के संघर्ष और सिद्धांतों की कहानी है।
तुकाराम मुंढे का 24वां ट्रांसफर
मूल रूप से बीड जिले के रहने वाले तुकाराम मुंढे ने शुरुआत से ही सख्त और निष्पक्ष अफसर की छवि बनाई। नांदेड़ में सहायक कलेक्टर रहते उन्होंने जब स्कूलों में शिक्षकों की गैरहाजिरी पकड़ी, तो तुरंत कार्रवाई करते हुए कई को निलंबित कर दिया। इसका असर इतना गहरा था कि गैरहाजिरी दर 10-12% से घटकर 1-2% रह गई। इसके बाद उनका बेधड़क अंदाज सोलापुर, नागपुर, नाशिक, जालना और मुंबई जैसे शहरों तक चर्चा में रहा। नाशिक में आदिवासी आयुक्त रहते उन्होंने हजारों लोगों को योजनाओं का लाभ दिलवाया।
सोलापुर में आषाढ़ी वारी के दौरान तुकाराम मुंढे ने प्रदूषण रोकने के लिए 3,000 शौचालय बनवाए और मंदिरों में VIP दर्शन व्यवस्था पूरी तरह से बंद करवा दी। नवी मुंबई महानगर पालिका में रहते हुए उन्होंने ‘कमिश्नर मॉर्निंग वॉक’ जैसी अनूठी पहल शुरू की, जहां लोग सुबह-सुबह पार्क में मिलकर अपनी समस्याएं बताते और मुंढे वहीं मौके पर हल भी निकालते। यह पहल उनके ज़मीनी जुड़ाव और जन संवाद की मिसाल बन गई।
मुंढे के बार-बार ट्रांसफर के पीछे उनकी वही ईमानदार छवि और राजनीतिक दखल को न मानने की नीति मानी जाती है। उन्होंने हमेशा कानून और प्रशासनिक मर्यादाओं को प्राथमिकता दी। शायद यही वजह रही कि उनका कामकाज कई बार नेताओं को असहज कर देता है। लेकिन अब जबकि उन्हें दिव्यांग कल्याण विभाग में भेजा गया है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि मुंढे वहां भी अपनी सख्त लेकिन संवेदनशील कार्यशैली से क्या बदलाव लाते हैं।





