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Wed, Dec 17, 2025

राज ठाकरे का निशाना: महाराष्ट्र में बाहरी जमीन लें, हिस्सेदारी दें या मराठी को रोजगार दें

Written by:Neha Sharma
Published:
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने एक बार फिर मराठी और बाहरी लोगों के मुद्दे पर बड़ा बयान दिया है। ठाकरे ने कहा कि अब महाराष्ट्रवासियों को अपनी जमीनें बेचने से पहले सोचना चाहिए।
राज ठाकरे का निशाना: महाराष्ट्र में बाहरी जमीन लें, हिस्सेदारी दें या मराठी को रोजगार दें

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने एक बार फिर मराठी और बाहरी लोगों के मुद्दे पर बड़ा बयान दिया है। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि गुजरात में कोई बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता, लेकिन महाराष्ट्र में कोई भी आकर कहीं से भी जमीन खरीद लेता है और कारोबार शुरू कर देता है। ठाकरे ने कहा कि अब महाराष्ट्रवासियों को अपनी जमीनें बेचने से पहले सोचना चाहिए। अगर कोई जमीन खरीदने आए तो उससे यह कहा जाए कि वह कंपनी में हिस्सेदारी दे और मराठी युवाओं को रोजगार दे।

राज ठाकरे ने फिर उठाया मराठी बनाम बाहरी का मुद्दा

राज ठाकरे ने यह भी आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार अब सरकारी खर्च पर गुजराती साहित्य सम्मेलन करवाने जा रही है। उन्होंने इसे एक राजनीतिक चाल करार दिया और कहा कि सरकार चाहती है कि इस पर प्रतिक्रिया देकर हम फंस जाएं और वे राजनीति कर सकें। उन्होंने कहा कि अब मनसे सरकार के बहकावे में नहीं आएगी, लेकिन जब भी महाराष्ट्र की अस्मिता और संस्कृति पर आंच आएगी, तब हम जरूर आवाज उठाएंगे। उन्होंने जनता से आग्रह किया कि वे सरकार की गतिविधियों पर सतर्क नजर रखें।

ठाकरे ने यह भी कहा कि जब हम मराठी और हिंदी भाषा को लेकर मुद्दा उठाते हैं तो हमें बाहरी विरोधी बताया जाता है, लेकिन गुजरात में दो बार बिहारियों को भगाया गया और हिंसा भी हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि वहां बिहारी लोगों के खिलाफ हिंसक आंदोलन चलाने वाले व्यक्ति को भाजपा ने पार्टी में शामिल कर विधायक बना दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर कोई राज्य अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए खड़ा होता है तो उसे बदनाम क्यों किया जाता है।

गौरतलब है कि हाल ही में महाराष्ट्र में ‘मराठी बनाम हिंदी’ विवाद फिर से चर्चा में आ गया था। मराठी नहीं बोलने को लेकर मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा उत्तर भारतीयों पर हमला करने की घटनाएं सामने आई थीं, जिससे राजनीतिक माहौल गर्म हो गया था। इन घटनाओं ने भाषा, पहचान और रोजगार के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है।