MP By-Election 2020 – क्या दागदार नेता बचा संकेंगे अपनी पार्टी की साख, अब जनता को करना है फैसला

Gaurav Sharma
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जबलपुर, संदीप कुमार। मध्यप्रदेश की 28 सीटों में होने वाले उपचुनाव (MP By-Election 2020) को लेकर भले ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों को टिकिट दे दिया हो पर पार्टी ने ये जानने की कोशिश नहीं की हम जिस प्रत्याशी को टिकिट दे रहे है उसका बैक ग्राउंड क्या है, क्या कही उसकी आपराधिक छवि पार्टी की साख को डूबा तो नहीं देगी। हाल ही में जिन 28 सीटों पर चुनाव हो रहे है उन सीटो में 18% ऐसे प्रत्याशी है जिन पर आपराधिक मामले दर्ज है, वहीं 11% ऐसे प्रत्याशी है जिन पर गंभीर अपराध हत्या, हत्या का प्रयास, रेप, गैंगरेप जैसे संगीन अपराध दर्ज है।

Association For Democratic Refarma (ए.डी.आर) की रिपोर्ट के मुताबिक ये है  प्रत्याशीयो द्वारा घोषित आपराधिक मामले, लोकतंत्र में होने वाले चुनाव को लेकर कई तरह की सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने वाले(adr) ने मध्यप्रदेश की 28 सीट पर होने वाले उपचुनाव में खड़े हुए राजनीतिक दलों के प्रत्याशीयो का बायोडेटा निकाला है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज है। आप भी जाने क्या है प्रत्याशियों का रिकॉर्ड……

दलउ.संख्याघो.अ.मा 

प्रतिशत

 

भाजपा281243%
कॉन्ग्रेस281450%

 

बीएसपी280829%
सपा140429%
निर्दलीय1781609%

 

एक नजर राजनीतिक पार्टीयो के उम्मीवारों के चल रहे गंभीर आरोप ….

दलउ.संख्याघो.अ.माप्रतिशत

 

भाजपा280829 %
कॉन्ग्रेस280621 %

 

बीएसपी280311 %
सपा140429%
निर्दलीय1781307%

 

ये भी जाने ADR  की रिपोर्ट में

Adr ने अपनी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टीयो में 40 से 50% तक प्रत्याशी आपराधिक छवि वाले जिनके खिलाफ कई जघन्य अपराध थानों में दर्ज है। हालांकि इन प्रत्याशियों का अपने अपराध को छिपाने के लिए दावा होता है कि हमारा प्रकरण अभी न्यायलय में विचाराधीन है और जब तक अपराध साबित नही हो जाता तब तक हमें अपराधी न माने। रिपोर्ट में सामने आया है कि हाल ही में होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस के 50 फीसदी तो भारतीय जनता पार्टी के 43 फीसदी ऐसे प्रत्यासी है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले थानों में दर्ज है।

 

आरटीआई एक्टिविस्ट ने की मांग

ADR  की रिपोर्ट के हवाले से आरटीआई एक्टिविस्ट मनीष शर्मा ने मांग की है चुनाव आयोग को इस और ध्यान देना अतिआवश्यक है कि जो प्रत्यासी जनता का बहू मूल्य वोट पाकर विधानसभा तक पहुँचते है, उनकी छवि दागदार तो नही है। क्योंकि अगर आपराधिक लोग जनता को वोट पाकर चुनाव जीतेगा तो उसमें हमेशा ये अंदेशा रहता है कि कही उसने अपने बाहूबल का उपयोग करके तो चुनाव नहीं जीता है।

मनीष शर्मा बताते है कि उपचुनाव में खड़े हुए 355 प्रत्याशियों में से 63 याने 18% ऐसे है जिनके खिलाफ कई गंभीर अपराध जैसे हत्या,हत्या के प्रयास,रैप, डकैती सहित कई अन्य मामले दर्ज है बावजूद इसके वो सीना ठोक कर जनता के पास जाकर वोट मांग रहे है,उन्होंने कहा कि इसको लेकर चुनाव आयोग को ये देखना होगा कि इस तरह की छवि वाले लोग क्या वाकई चुनाव लड़ने के लायक है।

आपराधिक पृष्ठभूमि

  • उम्मीदवारों द्वारा घोषित आपराधिक मामले-365 में से 63(18%)उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले घोषित।
  • उम्मीदवारों के गंभीर आपराधिक मामले-उपचुनाव में खड़े हुए 39 प्रत्याशी ऐसे है जिनके खिलाफ गंभीर अपराध दर्ज है।

* कांग्रेस-

  • 50% आपराधिक प्रत्यासी….
  • 21 फीसदी गंभीर अपराध के उम्मीदवार

* भाजपा

  • 43 % आपराधिक मामले वाले उम्मीदवार..
  • 29 फीसदी गंभीर अपराध वाले उम्मीदवार.…

* सपा

  •  29% आपराधिक मामले के प्रत्याशी
  •  29 फीसदी जघन्य अपराध वाले प्रत्यासी

बसपा

  •  29 % आपराधिक प्रत्याशी
  •  11% गंभीर अपराध वाले उम्मीदवार

निर्दलीय

  •  9% आपराधिक प्रत्याशी
  •  7% गंभीर अपराध वाले प्रत्याशी

राजनीतिक विश्लेषक भी मानते है कि चुनाव में अब बाहूबलो का होता है दबदबा

सरपंच से लेकर सांसद तक के चुनाव में अब आम व्यक्ति नहीं बल्कि बाहुबली लोग ही चुनाव लड़ते हैं, यही वजह है कि अब एक आम  व्यक्ति चुनाव लड़ने से परहेज कर रहा है। राजनैतिक विश्लेषक चैतन्य भट्ट जी की माने तो अब चुनाव धनबल के बूते ही लड़ा जा रहा है।

जनता की सेवा करने की अब कोई भी राजनीतिक दल को चिंता नहीं है, उनका यह एकमात्र उद्देश्य होता है कि हम किसी तरह सत्ता में आए आ जाएं और सत्ता में आने के लिए वह साम-दाम-दंड-भेद जितनी भी तरह की चीजें होती हैं। वह सब कुछ उपयोग करते हैं,राजनीति पार्टीयो का भी अब ये सोचना होता है कि हम ऐसे कैंडिडेट को खड़ा करें तो जिसके पास खूब पैसा है। भले ही उसका बैक ग्राउंड आपराधिक हो।

उन्होंने कहा कि आज पार्षद जैसे छोटे चुनाव में लाखो रुपए खर्च किए जा रहे हैं ऐसी स्थिति में एक आम आदमी जो अच्छी छवि का व्यक्ति है, जो समाज के लिए कुछ करना चाहता है वह राजनीति से दूर हो जाता है उनको लगता है कि हमारे यहां आस-पास जो चारों तरफ अपराधिक तत्वों लोग हैं उनके सामने हम कैसे टिक पाएंगे।राजनीति विश्लेषक ने कहा कि आज सिद्धांत,ईमानदारी और शुचिता की बात पलायन कर चुकी है यही कारण है कि नई पीढ़ी का युवा यह अब देखकर राजनीति से दूर हो रहा है।

उन्होंने कहा कि राजनीति में जिस तरह की गिरावट आ रही है यह बहुत दुखदाई है लेकिन इसके लिए मतदाता को सबसे ज्यादा सचेत होना पड़ेगा क्योंकि मतदाता ही उसको चुनता है। अगर मतदाता चाह ले कि हमें अपराधी प्रवृत्ति वाले लोगों को नहीं चुनना है तो धीरे धीरे सभी पार्टियों को भी लगने लगेगा कि आपराधिक छवि वाले लोगों को टिकिट देना सही नही है।

हम आपको बता दें कि Association For Democratic Refarma  (ए.डी.आर) वह संस्था है जो कि चुनाव में होने वाले कई तरह के गड़बड़ियां जैसे कि  ईवीएम, प्रत्याशियों का अपराधिक रिकॉर्ड सहित कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। हालांकि अभी तक किसी भी मामले में निर्णय सामने नहीं आया है, बाहरहाल अब देखना यह होगा कि आगामी 3 नवंबर को होने वाले मतदान में जनता इतना आपराधिक उम्मीदवारों को समर्थन देती है।

 


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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