लाजपत आहूजा, ब्लॉग। इन दिनों पूरी दुनिया यूक्रेन के नाम से वाक़िफ़ है, पर यह तथ्य कि आज़ादी के तत्काल बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की पहली हार इसी यूक्रेन के कारण हुई थी। दरअसल मामला सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता का था। यूक्रेन का उन दिनों यूक्रेनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपबि्लक नाम हुआ करता था।
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उस दिन हुआ यह था कि सुरक्षा परिषद के तीन अस्थाई सदस्य- आस्ट्रेलिया ,ब्राज़ील और पोलैंड के स्थान पर तीन नए सदस्यों का चुनाव होना था। जिसमे भारत भी एक उम्मीदवार था। अर्जेंटीना और कनाडा पहले दौर में जीत गए थे। यूक्रेनियन रिपबि्लक और भारत में मुक़ाबला चल रहा था। लेकिन भारत इस मुक़ाबले से बाहर हो गया। कश्मीर का मामला जब संयुक्त परिषद में आया तो इस हार से भारत एक क्षण में निर्णय करने वाले के बजाय फरियादी की भूमिका में आ गया।
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2017 में एक बार फिर ऐसा मौका आया, जब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जज की नियुक्त करने के लिये भारत और ब्रिटेन के न्यायाधीश बचे थे। संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह कभी नहीं हुआ था कि सुरक्षापरिषद के किसी स्थायी सदस्य देश का प्रतिनिधि न चुना जाए। पर ब्रिटेन को हारना पड़ा और भारत के न्यायविद दलवीर भंडारी 9 साल के लिये जज नियुक्त हुये। इस तरह यह भारत की समर्थता का यह अनुपम उदाहरण बना।
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भारत के संयुक्त राष्ट्र के तब के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने इस एक प्रसंग पर पूरी किताब लिख डाली है। इस पूरे मामले में तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज की उन्होंने भूरि भूरि प्रशंसा की थी।