SAHARA के एक और एजेंट ने की आत्महत्या, कंपनी नही कर रही थी भुगतान

Pooja Khodani
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SAHARA

रांची, डेस्क रिपोर्ट। झारखंड (Jharkhand) के बोकारो मे गोमिया के सहारा एजेंट गणेश नोनिया (Sahara India Agent Ganesh Nonia) ने आत्महत्या कर ली है। सहारा से लगभग बीस साल से जुड़े गोमिया पर वह लोग लगातार दबाव डाल रहे थे जिनका पैसा गोमिया ने सहारा में लगवाया था। लेकिन कंपनी द्वारा पैसा भुगतान (Payment Pressure) ना होने पर निवेशक गोमिया पर लगातार दबाव बना रहे थे।

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झारखंड राज्य के बोकारो जिले के गोमिया के आईईएल थाना क्षेत्र में रहने वाले गणेश नोनिया पिछले बीस साल से सहारा इंडिया के पैराबैंकिंग के एजेंट थे। वे गवर्नमेंट कॉलोनी में रहते थे। पिछले दस सालों में गोमिया ने हजारों लोगों का पैसा सहारा इंडिया कंपनी (Sahara India Company) में लगाया था और कंपनी द्वारा आश्वासन दिया गया था कि रकम दोगुनी तीनगुनी करने के साथ-साथ परिपक्वता अवधि पूरी होते ही लोगों को लौटा दी जाएगी। लेकिन सहारा ने पैसा नहीं लौटाया और निवेशक लगातार गोमिया के ऊपर दबाव बनाने लगे।

गोमिया ने लगातार सहारा के उच्च अधिकारियों से बातचीत की लेकिन किसी ने भी पैसा लौटाने के बारे में सही जवाब नहीं दिया। निवेशकों की प्रताड़ना से तंग आकर सहारा द्वारा पैसा न लौटाए जाने की वजह से गोमिया डिप्रेशन में आ गये थे और शनिवार की रात उन्होने तबेले में रस्सी के सहारे झूल कर आत्महत्या कर ली। घटना की जानकारी सुबह मिली जब पत्नी राधा देवी को गोमिया नहीं मिले और उन्होंने उन्हें तलाश किया तब उनका शव तबेले में फांसी से झूलता मिला। मृतक के परिवार में पत्नी और तीन बेटियां हैं और परिजनों का रो रो कर बुरा हाल हो रहा है। आईईएल थाना पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। थाना प्रभारी का कहना है कि मृतक मानसिक तनाव में थे और इसकी वजह सहारा इंडिया द्वारा पैसे वापसी ना किया जाना बताई गई है।

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यह पहला मामला नहीं जब सहारा द्वारा पैसे वापस न लौटाने की वजह से निवेशकों ने एजेंटों पर दबाव डाला हो और एजेंटों ने गलत कदम ना उठाया हो। ग्वालियर जिले के डबरा में भी भूपेंद्र जैन नाम के एजेंट ने 5 मार्च 2021 को आत्महत्या कर ली थी और सुसाइड नोट में सहारा प्रबंधन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद भी आज तक पुलिस ने सिर्फ छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई करने के अलावा कुछ नहीं किया है और कंपनी ने भी तमाम आश्वासनों के बाद भूपेन्द्र के परिवार को शेष राशि का भुगतान नहीं किया है।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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