Floor Test: जब विपक्ष किसी सत्ताधारी पार्टी के कामकाज पर आरोप लगाती है, तो यह आम स्टेटमेंट है कि विपक्ष सरकार को गिराने के इरादे से ऐसा करता है। इस तरह की स्थिति में सरकार को अपनी प्राधिकारिकता बनाए रखने के लिए अपने समर्थन बढ़ाने और विपक्ष के आरोपों का मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत होती है।
फ्लोर टेस्ट की नौबत तब आती है जब सत्ताधारी सरकार का पूर्णिया मताधिकार किसी संसदीय वोट के माध्यम से नष्ट हो जाता है और उसके पास संशोधित बहुमत नहीं रहता है। इस स्थिति में, समर्थन प्राप्त किया जा सकता है या फिर नई सरकार का गठन किया जा सकता है, जिसमें अलग-अलग दलों का सहयोग लिया जाता है।
फ्लोर टेस्ट क्या होता है?
फ्लोर टेस्ट, जिसे विश्वास मत के नाम से भी जाना जाता है, एक संसदीय प्रक्रिया है जिसके माध्यम से यह निर्धारित किया जाता है कि क्या सरकार विधायिका का विश्वास बनाए रखने में सक्षम है या नहीं। यह आमतौर पर तब आयोजित किया जाता है जब यह संदेह होता है कि सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है।
अविश्वास प्रस्ताव, जिसे असुरक्षा प्रस्ताव या नकारात्मक मत के नाम से भी जाना जाता है, एक संसदीय प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विपक्ष यह निर्धारित करने का प्रयास करता है कि क्या सत्तारूढ़ सरकार विधायिका का विश्वास बनाए रखने में सक्षम है या नहीं। यह विपक्ष को सरकार की नीतियों और कार्यों पर सवाल उठाने और उन्हें सदन में जवाबदेह ठहराने का एक साधन प्रदान करता है। इसका उपयोग सरकार की विफलताओं, कमियों और भ्रष्टाचार पर प्रकाश डालने के लिए किया जा सकता है। यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो यह सरकार के इस्तीफे और संभावित रूप से सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकता है।
यह कैसे होता है
विधानसभा या लोकसभा अध्यक्ष फ्लोर टेस्ट आयोजित करते हैं। प्रत्येक विधायक या सांसद को खुले तौर पर अपना वोट देना होता है, आमतौर पर “हां” या “नहीं” कहकर। बहुमत प्राप्त करने के लिए, सरकार को सदन में उपस्थित सदस्यों की आधी संख्या से अधिक वोट प्राप्त करने होते हैं। यदि सरकार बहुमत प्राप्त करने में विफल रहती है, तो उसे अपदस्थ माना जाता है।
फ्लोर टेस्ट का महत्व
यह लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि सरकार सदन के प्रति जवाब देह है। यह सरकारी स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता है। यह विधायकों और सांसदों को अपनी विवेक के अनुसार मतदान करने का अवसर प्रदान करता है।
कब इसकी आवश्यकता होती है
- नई सरकार बनने के बाद: यह सुनिश्चित करने के लिए कि नई सरकार को सदन में बहुमत प्राप्त है।
- विश्वास मत: जब विपक्ष सरकार में अविश्वास व्यक्त करता है और सदन में बहुमत साबित करने की चुनौती देता है।
- सरकार में बदलाव: जब गठबंधन सरकार में दल बदलते हैं या सरकार से समर्थन वापस लेते हैं।
- असाधारण परिस्थितियां: जब राज्यपाल या अध्यक्ष को लगता है कि सरकार ने सदन का विश्वास खो दिया है।