Gandhi Jayanti: आज 2 अक्टूबर यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है। देशभर में इसे बड़ी ही धूमधाम के साथ राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। देश के अलावा दुनिया के जिस भी कोने में भारतीयों का बसेरा है वहां ये दिन काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। भारत की आजादी में बापू ने जो योगदान दिया वो अतुलनीय है और उनके द्वारा किए गए संघर्ष से ही देश का हर नागरिक आजाद भारत में सांस ले रहा है। चलिए गांधी जयंती के इस खास मौके पर बापू से जुड़े कुछ तथ्य जानते हैं।
154वीं गांधी जयंती
1869 में 2 अक्टूबर के दिन गुजरात के पोरबंदर में जन्में महात्मा गांधी की आज 154वीं जयंती है। इस खास दिन पर देश भर के स्कूल, कॉलेज समेत तमाम तरह की संस्थाओं और स्थानों पर प्रार्थना सभा और कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस दिन सभी बापू को याद कर उनके बलिदानों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
महात्मा गांधी से जुड़े तथ्य
- महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।
- 1930 में महात्मा गांधी ने दांडी मार्च निकाला था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। इसके बाद वह 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व करते दिखाई दिए थे।
- 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
- अफ्रीका और भारत में आजादी के लिए गांधी जी ने कई आंदोलन किए और उनके इस योगदान को देखते हुए 15 जून 2007 को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
- नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने सबसे पहले बापू को महात्मा की उपाधि दी थी, जिसके बाद से उन्हें इस नाम से पहचाने जाने लगा। 1944 में सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश दिया जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के नाम से बुलाया और उसके बाद से इस नाम से उन्हें देशभर में संबोधित किया जाने लगा और आज भी वह भारत के राष्ट्रपिता कहलाते हैं।
राम नगरी अयोध्या से गहरा नाता
अहिंसा का नारा देने वाले महात्मा गांधी का रामनगरी अयोध्या से भी गहरा कनेक्शन है। 1921 में उन्होंने एक राष्ट्रव्यापी दौरे के दौरान जालपा देवी मंदिर के करीब एक सभा रखी थी। इस दौरान उनकी एक झलक पाने के लिए सभा स्थल के रास्ते में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। अपनी सभा के दूसरे दिन गांधी जी ने सरयू में स्नान किया था। जानकारी के मुताबिक बापू के निधन के उपरांत उनकी अस्थियां देशभर की जिन पवित्र नदियों में विसर्जित की गई थी, उनमें सरयू भी शामिल थी। आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने पदाधिकारी के साथ स्वयं अस्थियां लेकर अयोध्या पहुंचे थे और उन्हें सरयू में विसर्जित किया था। इस स्मृति को हमेशा याद रखा जा सके इसीलिए सरयू तट पर गांधी ज्ञान मंदिर की स्थापना की गई।