कर्मचारियों-शिक्षकों के लिए अच्छी खबर, तबादला नीति में बदलाव, अब इस तरह होंगे ट्रांसफर, ग्रेच्युटी के भुगतान पर भी बड़ा फैसला

उच्चतर शिक्षा विभाग हेतु नियमावली उत्तर प्रदेश सहायता प्राप्त महाविद्यालय अध्यापक स्थानांतरण नियमावली 2024 को मंजूरी दी गई है। इसके तहत शिक्षक अब पांच वर्ष की न्यूनतम सेवा की जगह सिर्फ तीन साल बाद ही स्थानांतरण करवा सकेंगे।

Pooja Khodani
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UP Cabinet decisions : सोमवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में कैबिनेट बैठक हुई, जिसमें 27 प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। खास करके बैठक में सहायता प्राप्त महाविद्यालय अध्यापक स्थानांतरण नियमावली 2024 और उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट बेनिफिट्स रूल्स 1961 में संशोधन के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई।

राज्य सरकार से सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों में कार्यरत शिक्षकों के लिए तबादले की नई नियमावली के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।  इस फैसले से हजारों शिक्षकों को उनके निवास स्थान के पास समायोजन मिल सकेगा। इस नियमावली के लागू होने के बाद से शिक्षकों को अपने गृह जनपद में लौटने का अवसर मिलेगा।  खास करके इसका लाभ महिलाओं और दिव्यांगों को मिल सकेगा।

अब 3 साल में हो सकेंगे शिक्षकों के तबादले

कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव ने बताया कि सहायता प्राप्त महाविद्यालय अध्यापक स्थानांतरण नियमावली 2024 के तहत अब महाविद्यालय में न्यूनतम तैनाती को 5 वर्ष को घटाकर 3 वर्ष किया गया।इसके तहत सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज के शिक्षक अब 5 वर्ष की न्यूनतम सेवा की जगह सिर्फ 3 साल बाद ही स्थानांतरण करवा सकेंगे। शिक्षक अपने संपूर्ण सेवा काल में केवल एक बार स्थानांतरण के हकदार होंगे।

बदला ग्रेच्‍युटी को लेकर यह नया नियम

सेवानिवृत्त राज्य कर्मचारियों के लिए उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट बेनिफिट रूल्स 1961 में संशोधन प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। इसके तहत यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु सेवा में रहते हुए अथवा सेवानिवृत्ति के बाद ग्रेच्युटी की धनराशि प्राप्त किए बिना हो जाती है और उसने अपने पीछे कोई परिवार नहीं छोड़ा है और न ही कोई नॉमिनी बनाया है तो ऐसी स्थिति में ग्रेच्युटी का भुगतान उस व्यक्ति को किया जा सकेगा कि जिसके पक्ष में न्यायालय द्वारा उत्तराधिकार प्रमापत्र दिया गया हो।पहले उसकी ग्रेच्युटी का पैसा सरकार को समाहित होता था यानि सरकारी खजाने में चला जाता था।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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