नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। 180 देशों के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2022 में भारत आठ पायदान गिरकर 142 से 150 नंबर पर खिसक गया है। विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी रिपोर्टर्स देशों के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया ध्रुवीकरण में समग्र रूप से दो गुना वृद्धि की ओर इशारा करता है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पत्रकारिता के आजादी में भारत की रैंकिंग कम हुई है इसका कारण भारत में हो रही “पत्रकारों के खिलाफ हिंसा” और “राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया” के कारण गिरी है। यह कारण दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में “संकट” की स्थिति में प्रेस की स्वतंत्रता को जन्म दिया है।
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रिपोर्ट्स का सूचकांक कहता है, भारत की मीडिया पर सत्तावादी और राष्ट्रवादी सरकारों” का दबाव है। 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी के देश की बागडोर संभालने के बाद से यह परिवर्तन ज्यादा देखा गया है। बहुत पहले से प्रधानमंत्री मोदी ने पत्रकारों को अपने और अपने समर्थकों के बीच सीधे संबंधों को प्रदूषित करने वाले ‘बिचौलियों’ के रूप में दिखने के लिए आलोचनात्मक रुख अपनाया है। भारतीय पत्रकार जो सरकार की आलोचना करते हैं, उन्हें मोदी भक्तों द्वारा चौतरफा उत्पीड़न और हमले के अभियानों का शिकार होना पड़ा है।
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यह प्रक्रिया पूरी तरह भारत के नीतिगत ढांचे के लिए दोषी है, जो सिद्धांत रूप में सुरक्षात्मक नहीं है, एवं यह मानहानि, देशद्रोह, अदालत की अवमानना के आरोपों के कठघरे में खड़ा करता है। जो पत्रकार सरकार की आलोचना करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालता है, उन्हें “राष्ट्र-विरोधी” करार दे दिया जाता है। हर साल तीन या चार पत्रकार अपने काम के लिए मारे जाते हैं। मीडियाकर्मियों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है। “पत्रकार पुलिस हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा घात लगाकर हमला करने और आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा घातक प्रतिशोध सहित सभी प्रकार की शारीरिक हिंसा के के शिकार होते हैं।
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वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स भी कहता है कि कश्मीर में स्थिति यही “चिंताजनक” बनी हुई है और पत्रकारों को अक्सर पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा परेशान किया जाता है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन और भारतीय महिला प्रेस कोर के एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि मीडिया पर हमले असंख्य हुए हैं।