सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार वाणिज्यिक भाषण पर सीधे तौर पर लागू नहीं किया जा सकता। यह टिप्पणी कोर्ट ने स्टैंड-अप कॉमेडियन से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वाणिज्यिक भाषण, जैसे विज्ञापन या प्रचार सामग्री, को संविधान के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में पूरी तरह शामिल नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वाणिज्यिक भाषण का उद्देश्य व्यावसायिक लाभ होता है और इसलिए इसे सामान्य अभिव्यक्ति से अलग माना जाता है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि ऐसे मामलों में कानूनी सीमाओं और नैतिकता का ध्यान रखना जरूरी है, खासकर जब यह सार्वजनिक हित से जुड़ा हो।
आपत्तिजनक सामग्री के लिए शिकायतें
यह मामला तब सामने आया जब कुछ स्टैंड-अप कॉमेडियनों के खिलाफ उनके प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर आपत्तिजनक सामग्री के लिए शिकायतें दर्ज की गईं। कोर्ट ने कहा कि ऐसी सामग्री, जो व्यावसायिक मंचों पर प्रस्तुत की जाती है, को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में लाने से पहले उसकी प्रकृति और प्रभाव की गहन जांच जरूरी है।
सुनवाई को आगे बढ़ाने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया और संबंधित पक्षों से अपने तर्क प्रस्तुत करने को कहा। यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वाणिज्यिक भाषण के बीच की रेखा को और स्पष्ट करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।





