बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, मन्दिर हो या दरगाह, कोई भी धार्मिक संरचना लोगों के जीवन में बाधा नहीं बन सकती

जस्टिस गवई ने कहा, हमें यह समझना होगा कि अपराध का आरोपी या दोषी होना मकान गिराने का आधार नहीं हो सकता, इसे 'बुलडोजर जस्टिस' कहा जा रहा है।

Atul Saxena
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Supreme Court strict comment on bulldozer action: बुलडोजर एक्शन को लेकर सुनवाई कर रही देश की सर्वोच्च अदालत ने आज 1 अक्टूबर को इस मामले में सुनवाई करते हुए सख्त टिप्पणी की है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर बने मंदिर या मस्जिद यानि पब्लिक प्लेस पर या सड़क के बीच बनी कोई भी धार्मिक संरचना लोगों के जीवन में बाधा नहीं बन सकती है कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए उसके निर्देश सभी नागरिकों के लिए होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म को मानते हों।

देश के नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि 

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि देश के नागरिकों की सुरक्षा हमारे लिए सबसे ऊपर है, सड़क, जल निकायों या रेल पटरियों पर अतिक्रमण करने वाले किसी भी धार्मिक ढांचे को हटाया जाना चाहिए, सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता यूपी सरकार, मध्य प्रदेश और राजस्थान की तरफ से पेश हुए उन्होंने कहा, “मेरा सुझाव है कि रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए 10 दिन का समय देना चाहिए, उन्होंने अदालत से कहा कि यहाँ मैं कुछ तथ्य रखना चाहता हूँ, यहां ऐसी छवि बनाई जा रही है जैसे एक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है।

अवैध निर्माण हिंदू का हो या मुस्लिम का, कार्रवाई होनी चाहिए

तुषार मेहता की दलील पर जस्टिस गवई ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में हैं अवैध निर्माण हिंदू का हो या मुस्लिम का, कार्रवाई होनी चाहिए, इस पर मेहता ने कहा कि ऐसा ही होता है, मेहता की बात सुनते ही जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अगर 2 अवैध ढांचे हैं और आप किसी अपराध के आरोप को आधार बना कर उनमें से सिर्फ 1 को गिराते हैं, तो सवाल उठेंगे ही, जस्टिस गवई ने कहा, हमें यह समझना होगा कि अपराध का आरोपी या दोषी होना मकान गिराने का आधार नहीं हो सकता, इसे ‘बुलडोजर जस्टिस’ कहा जा रहा है।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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