भारतीय रेलवे का इतिहास जितना ज्यादा पुराना है, उतना ही अधिक मजेदार भी है। यहां हर वर्ग के यात्री सफर करते हैं। यह बेहद आसान, आरामदायक और सस्ता सफर माना जाता है। पूरे विश्व में यह चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। देश भर के अलग-अलग हिस्सों के लिए लगभग 1300 से अधिक ट्रेन रोजाना संचालित की जाती है। जिसमें सभी के रूट अलग-अलग होते हैं। शहर, क्षेत्रफल और लोगों की सुविधाओं के अनुसार रेलवे स्टेशन और उनके स्टॉपेज तय किए जाते हैं। भारत में राजधानी, दुरंतो, वंदे भारत, शताब्दी, तेजस, गरीब रथ, एक्सप्रेस, मेल, सुपरफास्ट, लोकल आदि चलाई जाती है।
ट्रेन का सफर बहुत ही यादगार और अनोखा होता है। इस दौरान लोग कई तरह के लोगों से मिलते हैं, नया अनुभव प्राप्त करते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृति और सभ्यता को देखते हैं।

भारत का इकलौता रेलवे स्टेशन
इंडियन रेलवे से जुड़े कई ऐसे फैक्ट्स हैं, जिनके बारे में तो लोग जानते हैं, पर कुछ ऐसे भी फैक्ट्स है, जिससे बहुत सारे लोग आज भी अनजान हैं। अभी भी देश में ऐसी बहुत सारी जगह है, जहां रेलवे का विस्तार सही तरीके से नहीं हो पाया है। जिसकी बहुत सारी वजहें हैं, तो कहीं ऐसा भी है, जहां रेलवे तेजी से अपना जाल बिछा रहा है और लोगों के लिए समय-समय पर विभिन्न रूट पर ट्रेन चलाई जा रही है। इसके किराए में भी रियायत दी जाती है। आज हम आपको उस रेलवे स्टेशन के बारे में बताएंगे, जहां 5 साल से कोई भी ट्रेन नहीं रुकी है।
कोहदाड़ रेलवे स्टेशन (Kohdaar Railway Station)
दरअसल, कोहदाड़ रेलवे स्टेशन भारत का इकलौता ऐसा रेलवे स्टेशन है, जो करीब 5 सालों से खामोश पड़ा है। यहां अब एक भी ट्रेन नहीं रुकती है, जहां पहले लोगों की खचाखच भीड़ देखने को मिलती थी, वहीं अब पुरे स्टेशन पर सन्नाटा पसारा रहता है। बता दें कि यह रेलवे स्टेशन मध्य प्रदेश के खंडवा शहर से कुछ ही दूर पर स्थित है, जहां कोरोना से पहले सैकड़ो की संख्या में लोग कटनी-भुसावल जाने वाली पैसेंजर ट्रेन से सफर किया करते थे। किसान अपनी फसल लेकर बेचने जाते थे, छात्र शहर की ओर पढ़ाई करने के लिए जाते थे, तो वहीं युवा नौकरी की तलाश में निकलते थे, लेकिन आज यह स्टेशन पूरी तरह से खंडहर में तब्दील होने की कगार पर है।
जानें वजह
इसकी मुख्य वजह बहुत अलग है, जिसने यहां के स्थानीय लोगों के जीवन को प्रभावित कर दिया है। भारतीय रेलवे द्वारा कटनी भुसावल पैसेंजर ट्रेन को अब एक्सप्रेस कर दिया गया है, जिस कारण वह इस स्टेशन पर नहीं रुकती। अब यहां केवल पटरी नजर आएगी, लेकिन आपको एक भी रेलगाड़ी रुकता हुआ नहीं नजर आएगा।
थम गई गांव की रफ्तार
स्थानीय लोगों का ऐसा कहना है कि कोहदाड़ रेलवे स्टेशन बहुत ही पुराना है, जिसके पास में एक नदी है। उसपर बने ब्रिज से ट्रेन आज भी गुजरती है। एक बार की बात है जब साल 1960-61 के दौरान भारी जल संकट पैदा हो गया था, तब लोग पानी के लिए तरस रहे थे। उस वक्त ट्रेन कोयले से चला करती थी। ऐसे में कोहदाड़ स्टेशन ही था, जिसने रेलवे को पानी पिलाया था। वहीं, अब ट्रेन के ना रुकने से यहां के ग्रामीण काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं। उनके सब्जी का रोजगार ट्रेन से जुड़ा हुआ था। नेपानगर में सप्ताह में 2 दिन बाजार लगती थी, ऐसे में ग्रामीण ट्रेन से जाते थे और सब्जी बेचकर शाम तक लौट आते थे।
लोगों का एकमात्र सहारा
खंडवा शहर में यह ट्रेन ही एकमात्र लोगों का सहारा थी। इसके बंद होने से लोगों का रोजगार ठप हो गया है। जिस कारण उन्हें बहुत ही ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अब उन्हें शहर जाने के लिए निजी वाहन या फिर बस, ऑटो का सहारा लेना पड़ता है। जिसका किराया बहुत अधिक है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है। फिलहाल, यह ट्रेन दोबारा चलेगी या नहीं… इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है, लेकिन भारतीय रेलवे इस फैसले से स्थानीय लोगों को बहुत ही ज्यादा परेशानी होती है।