एक शहर में रहने वाले क्या किसी दूसरे शहर में जमा कर सकते हैं लाइफ सर्टिफिकेट

Shashank Baranwal
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Life Certificate

नवंबर का महीना यानी कि खूब भागदौड़ वाला महीना, खासतौर से पेंशनर्स के लिए। जिन्हें इसी महीने लाइफ सर्टिफिकेट जमा करना होता है। ताकि पूरे साल बिना किसी रुकावट के वो पेंशन हासिल कर सकें। इस दौरान लंबी लंबी लाइने और भीड़ का सामना भी करना पड़ता है। उस पर उम्र भी अलग मुश्किलें बढ़ाती हैं। इससे निपटने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। जिसके तहत अब ऑनलाइन लाइफ सर्टिफिकेट दिया जा सकता है। साथ ही डोर स्टेप एजेंट भी नियुक्त किए गए हैं। अस्पताल में भर्ती या बेड रेस्ट पेंशनर्स के लिए भी ये इंतजाम किया गया है।

इतने हैं पेंशनभोगी

हर साल सारे पेंशनर्स को ये प्रक्रिया पूरी करनी ही होती है। लाइफ सर्टिफिकेट के मुताबिक केंद्र सरकार के वर्तमान पेंशन भोगियों की संख्या 69.76 लाख पेंशनर्स है। जो कि घर बैठे फेस रिक्ग्निशन आधारित तकनीक से भी अपनी जीवित होने का प्रमाण दे सकते हैं।

किसी भी शहर में जमा करें सर्टिफिकेट

कई बार पेंशनर्स इस सवाल को लेकर परेशान रहते हैं कि उनकी पेंशन किसी अन्य शहर में बनती है जबकि बच्चों के साथ रहने की वजह से उन्हें किसी अन्य शहर में रहना पड़ता है। ऐसे में उन्हें ये लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने के लिए अपने शहर में जाना पड़ता है।

आपको बात दें कि अब पेंशनभोगी किसी भी शहर में अपने बैंक की ब्रांच में ये सर्टिफिकेट जमा कर सकते हैं। आपको बस आधार कार्ड, पैन कार्ड और पीपीओ नंबर जैसी जरूरी जानकारी देनी होगी। फेस रिक्ग्निशन तकनीक के जरिए डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट से काम काफी आसान भी हो गया है। जिसके बाद वो ये सर्टिफिकेट घर से भी जमा कर सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया का मकसद ये है कि पेंशनर्स बिना किसी परेशानी के आसानी से पेंशन हासिल कर सकें।

 


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पत्रकारिता उन चुनिंदा पेशों में से है जो समाज को सार्थक रूप देने में सक्षम है। पत्रकार जितना ज्यादा अपने काम के प्रति ईमानदार होगा पत्रकारिता उतनी ही ज्यादा प्रखर और प्रभावकारी होगी। पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिये हम मज़लूमों, शोषितों या वो लोग जो हाशिये पर है उनकी आवाज आसानी से उठा सकते हैं। पत्रकार समाज मे उतनी ही अहम भूमिका निभाता है जितना एक साहित्यकार, समाज विचारक। ये तीनों ही पुराने पूर्वाग्रह को तोड़ते हैं और अवचेतन समाज में चेतना जागृत करने का काम करते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने अपने इस शेर में बहुत सही तरीके से पत्रकारिता की भूमिका की बात कही है–खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालोमैं भी एक कलम का सिपाही हूँ और पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे साहित्य में भी रुचि है । मैं एक समतामूलक समाज बनाने के लिये तत्पर हूँ।

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