दहेज की डिमांड ने ली एक पिता की जान, बेटी के शादी के कार्ड पर लिखा सुसाइड नोट

Gaurav Sharma
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हरियाणा, डेस्क रिपोर्ट। अपनी बेटी की शादी करना हर बाप का सपना होता है, मगर कैसा हो जब बेटी की शादी ही बाप के लिए फांसी का फंदा बन जाए, एक ऐसा ही मामला हरियाणा के रेवाड़ी से आया है, जहां दहेज की मांग के चलते एक पिता ने अपनी बेटी के शादी कार्ड पर ही सुसाइड नोट लिखकर मौत को गले लगा लिया।

पेशे से ट्रांसपोर्ट का काम करने वाले कैलाश तंवर से उसके बेटी के होने वाले ससुर ने 30 लाख रूपए की शादी करने की डिमांड की थी, लेकिन कैलाश तंवर ने 13 से 15 लाख रुपए तक का इंतजाम तो कर लिया था पर अचानक से 30 लाख के दहेज की डिमांड से परेशान होकर उसने आत्महत्या कर ली।

बताया जा रहा है कि आरोपी पक्ष ने कहा था कि अगर 30 लाख रूपए की शादी नहीं की तो लगन लेकर मत आना। मृतक पिता बेटी की शादी का कार्ड देने के लिए अपनी बहन के घर आया हुआ था, इसी दौरान ससुराल पक्ष ने अचानक से 30 लाख के दहेज की डिमांड कर ली जिससे परेशान होकर मृतक पिता ने अपनी ही बहन के घर के एक कमरे में फांसी का फंदा लगाकर अपनी जान दे दी। मृतक ने बेटी के कार्ड पर लिखे सुसाइड नोट पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से अपील करते हुए लिखा कि दहेज के लोभियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

बता दें कि ट्रांसपोर्ट का काम करने वाले कैलाश तंवर पाड़ला का रहने वाला हैं, जिसने अपनी बेटी की शादी गुरुग्राम के कासन के रहने वाले सुनील कुमार के बेटे रवि से तय की थी। वही बेटी की शादी 25 नवंबर को होने वाली थी।
मृतक के परिजनों का आरोप है कि बिचौलियों के माध्यम से वर पक्ष 30 लाख के दहेज की मांग कर रहा था। बताया जा रहा है कि वर पक्ष ने कहा था कि अगर 30 लाख की शादी नहीं कर सकते तो लगन मत लाना। जिसके बाद वधू पक्ष वर पक्ष के पास अपनी अपील लेकर गया था कि उनकी आर्थिक स्थिति इतनी नहीं है कि वह 30 लाख की शादी कर सकें, लेकिन वो नहीं माने।

मौत को गले लगाने से पहले मृतक ने सुसाइड नोट में लिखा कि हमने अपनी बेटी का रिश्ता गुरुग्राम के कासन के रहने वाले सुनील कुमार के बेटे रवि से तय किया था। मैंने शादी के लिए सारी तैयारियां कर ली थी। अपनी हैसियत के हिसाब से मैंने 13 से 15 लाख रुपए तक का इंतजाम कर लिया था।लेकिन वर पक्ष बार-बार दहेज के लिए परेशान करता रहा था। मैं अपनी हैसियत से बाहर जाकर इतना खर्च नहीं कर सकता, इसलिए अपनी इज्जत बचाने के लिए मैं कासन गया लेकिन उन लोगों ने रिश्ता करने से मना कर दिया।

अब मैं जिंदा नहीं रह सकता। मेरी मौत का जिम्मेदार सुनील कुमार और उसका परिवार है। वही मुख्यमंत्री से अपील करते हुए हैं मृतक ने लिखा कि मेरी मुख्यमंत्री और अन्य बुद्धिजीवियों से गुहार है कि दहेज के लोभीओं को सख्त से सख्त कार्रवाई कर सजा दी जाए। मेरा जो लेनदेन है, वह इस तरह से है। गाड़ी टाटा-407 है, जिनके नं. एचआर 47सी 9965 और 2748, आज से उनका मालिक मेरे वारिस हैं। कृपया मेरा आखिरी प्रणाम, मोदी जी, मनोहर लाल जी, अशोक गहलोत जी, भंवर जितेंद्र सिंह जी आपको मेरी तरफ से आखिरी राम-राम.।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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