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Sun, Dec 7, 2025

इस कथा के बिना अधूरी है करवा चौथ पूजा, मिलेगा अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद

Written by:Bhawna Choubey
करवाचौथ पर सुहागिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। इस दिन करवा चौथ व्रत कथा सुनना और पूजन विधि से पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है, जिससे विवाह में स्थायित्व और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
इस कथा के बिना अधूरी है करवा चौथ पूजा, मिलेगा अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद

करवाचौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि एक गहरी भावना है प्यार, विश्वास और अटूट बंधन का प्रतीक। इस दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर ‘सरगी’ खाती हैं और पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करतीं। शाम को चांद का दीदार कर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।

हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत सदियों से भारतीय परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है। करवा चौथ (Karwa Chauth) व्रत कथा सुनने और पढ़ने का विशेष महत्व होता है, क्योंकि ऐसा करने से व्रती को सौभाग्य, सुखी दांपत्य जीवन और पति की दीर्घायु का वरदान मिलता है।

करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth)

करवाचौथ व्रत कथा एक ऐसी पौराणिक कहानी है जो विश्वास और प्रेम की गहराई को दर्शाती है। कथा के अनुसार एक समय की बात है, एक ब्राह्मण परिवार में वीरवती नाम की कन्या थी। वह सात भाइयों की इकलौती बहन थी और सबकी लाडली भी। शादी के बाद जब पहली बार करवाचौथ आया, तो वीरवती ने पूरे विधि-विधान से निर्जला व्रत रखा।

दिनभर बिना कुछ खाए-पिए उसने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की। परंतु शाम होते-होते वह भूख-प्यास से अत्यधिक कमजोर हो गई और बेहोश होने लगी। यह देखकर उसके भाइयों से अपनी बहन की दशा देखी नहीं गई। उन्होंने एक तरकीब निकाली।

उन्होंने पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर छलनी के पीछे रख दिया, जिससे ऐसा लगा जैसे चांद निकल आया हो। वीरवती ने बिना जांचे-परखे उसे चांद मानकर अर्घ्य दे दिया और व्रत खोल लिया। लेकिन जैसे ही उसने पहला कौर खाया, उसे पति की मृत्यु का समाचार मिला। वह रोती हुई घर पहुंची और अपने दुर्भाग्य पर विलाप करने लगी। तब एक देवी प्रकट हुईं और वीरवती से कहा “हे सती स्त्री, यह सब तुम्हारे भाइयों की भूल का परिणाम है। अगले करवाचौथ तक तुम पुनः पूरे विधि-विधान से यह व्रत रखो, तुम्हारा पति पुनः जीवित हो जाएगा।”

वीरवती ने पूरे वर्ष तक कठोर तप किया और अगले करवाचौथ पर श्रद्धा से व्रत रखा। उसकी भक्ति और सच्चे प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान यम ने उसके पति को जीवनदान दे दिया। तभी से माना जाता है कि जो स्त्री सच्चे मन से करवाचौथ का व्रत करती है, उसे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और उसके पति की आयु लंबी होती है।

करवाचौथ व्रत पूजा विधि

  1. सुबह सूर्योदय से पहले सास अपनी बहू को सरगी देती हैं। इसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे, सेवई, और हल्का भोजन शामिल होता है। इसे खाकर महिलाएं पूरे दिन का व्रत प्रारंभ करती हैं।
  2. नहाने के बाद महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं, “मैं आज करवाचौथ का व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हूं।”
  3. शाम के समय पूजा स्थल पर चौकी सजाई जाती है। करवा, दीपक, छलनी, पानी का लोटा और चावल रखे जाते हैं। मां पार्वती, भगवान शिव, गणेश जी और चंद्रमा की पूजा की जाती है।
  4. पूजा के दौरान करवा चौथ व्रत कथा सुनना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। यह कथा ही व्रत को पूर्ण बनाती है।
  5. जब रात को चांद निकलता है, महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं, फिर उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है।

धार्मिक मान्यता और आध्यात्मिक अर्थ

करवा चौथ केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि स्त्री की श्रद्धा और प्रेम की शक्ति का प्रतीक है। इस व्रत के पीछे यह विश्वास है कि एक पतिव्रता नारी अपनी भक्ति और तपस्या से मृत्यु के देवता को भी झुका सकती है।

यह व्रत पति-पत्नी के बीच आत्मिक एकता और निष्ठा को भी मजबूत करता है। जहां आधुनिक युग में रिश्ते कई बार औपचारिकता तक सीमित हो जाते हैं, वहीं करवाचौथ हमें याद दिलाता है कि प्रेम का अर्थ सिर्फ साथ होना नहीं, बल्कि त्याग और विश्वास भी है।

करवा चौथ व्रत के वैज्ञानिक और सामाजिक पहलू

  1. जहां धार्मिक दृष्टि से यह व्रत पति की दीर्घायु का प्रतीक है, वहीं वैज्ञानिक रूप से भी इसका महत्व है।
  2. दिनभर व्रत रखने से शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया सक्रिय होती है।
  3. सूर्योदय से पहले सरगी लेने और रात में व्रत खोलने से शरीर में प्राकृतिक फास्टिंग रूटीन बनता है।
  4. यह परिवार और समाज में एकजुटता और प्रेम का संदेश देता है।
  5. हर वर्ष जब महिलाएं एक साथ सजी-धजी पूजा करती हैं, तो यह सामूहिकता भारतीय संस्कृति की सौंदर्य और शक्ति दोनों को प्रदर्शित करती है।

करवा चौथ से जुड़ी रोचक परंपराएं

  • महिलाएं पूजा के बाद एक-दूसरे को करवा दान करती हैं। इसमें गेहूं, मिठाई और वस्त्र रखे जाते हैं।
  • पूजा के दौरान सुहाग की सामग्री जैसे बिंदी, कंगन, मेहंदी, चूड़ियां, बिछिया आदि को देवी पार्वती को अर्पित किया जाता है।
  • व्रत कथा के बाद महिलाएं गीत गाते हुए थाल घुमाती हैं और 7 बार फेरों के रूप में करवा को एक-दूसरे को देती हैं।