Monday Special: सनातन धर्म में सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी देवताओं को समर्पित होता है। आज सोमवार है और सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस दिन महादेव को प्रसन्न करने के लिए लोग विधि विधान से भगवान शिव की पूजा अर्चना अभिषेक करते हैं साथ ही साथ व्रत रखते हैं। सोमवार को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ की आराधना करने से सभी बिगड़े हुए काम बन जाते हैं जीवन में आने वाले तमाम दुख नष्ट हो जाते हैं साथ ही साथ मनचाहा वर भी मिलता है। अगर आप भी जीवन के तमाम कासन से मुक्ति पाना चाहते हैं और मनचाहा वर पाना चाहते हैं तो आपको सोमवार के दिन भगवान शिव का अभिषेक जरूर करना चाहिए। इसके अलावा आपको शिव चालीसा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए आज हम आपको इस लेख के द्वारा बताएंगे कि सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा कैसे करनी चाहिए और कैसे शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए तो चलिए जानते हैं।
कैसे करें भगवान शिव की पूजा
1. पूजा और अभिषेक
प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करें। आप उन्हें जल, दूध, दही, घी, शहद और बेलपत्र अर्पित कर सकते हैं। आप सोमवार को विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं, क्योंकि यह उनका प्रिय दिन है। आप भगवान शिव का अभिषेक भी कर सकते हैं, जो जल, दूध, दही, घी, शहद और फूलों से किया जाता है।
2. मंत्रों का जाप
आप “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कर सकते हैं। यह एक शक्तिशाली मंत्र है जो भगवान शिव को प्रसन्न करने में मदद करता है। आप “शिव शतनाम स्तोत्र” या “लिंगाष्टक स्तोत्र” का भी पाठ कर सकते हैं।
3. ध्यान
आप प्रतिदिन कुछ समय के लिए ध्यान लगा सकते हैं। ध्यान आपको शांत रहने और भगवान शिव से जुड़ने में मदद करेगा। आप “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगा सकते हैं।
4. व्रत
आप सोमवार का व्रत रख सकते हैं। आप महाशिवरात्रि का व्रत भी रख सकते हैं, जो भगवान शिव का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है।
5. दान
आप गरीबों और जरूरतमंदों को दान कर सकते हैं। आप भोजन, कपड़े या दवाइयां दान कर सकते हैं।
6. सदाचार
सच बोलें और हमेशा दूसरों के प्रति दयालु रहें। क्रोध, लोभ और ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं से बचें। नियमित रूप से व्यायाम करें और स्वस्थ भोजन खाएं।
||शिव चालीसा||
||दोहा||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
||चौपाई||
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
|| दोहा ||
बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार
तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय
दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥
कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥
।। इति श्री शिव चालीसा समाप्त ।।
(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)