जानें क्यों बिश्नोई समाज के लिए खास है मुक्ति धाम मुकाम मंदिर, जहां दर्शन मात्र से बदलती है किस्मत

मुक्ति धाम मुकाम मंदिर बिश्नोई (Mukti Dham Mukam Bishnoi Temple) समाज के लिए अत्यंत पवित्र स्थान है, जहां गुरु जम्भेश्वर की समाधि स्थित है। मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

भावना चौबे
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Mukti Dham Mukam Bishnoi Temple

Mukti Dham Mukam Bishnoi Temple: भारत में इस समय मुक्तिधाम का मंदिर सबसे अधिक चर्चित धार्मिक स्थल बना हुआ है। यह मंदिर हिंदू धर्म के भक्तों के लिए पवित्र स्थान माना जाता है, खासकर विश्नोई समाज के लिए, जो इसे अपनी आस्था का केंद्र मानते हैं ।

हाल ही में इस मंदिर का नाम अभिनेता सलमान खान (Salman Khan) और लॉरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) के बीच चल रहे विवाद से जुड़ गया है। जिसने इसे मिडिया में चर्चा का विषय बना दिया है। इस विवाद से न केवल मंदिर की पवित्रता को नई रोशनी में रखा है, बल्कि इसमें जुड़ी धार्मिक भावनाओं को भी प्रभावित किया है।

कहां है मुक्तिधाम मुकाम मंदिर

मुक्तिधाम मुकाम मंदिर बिश्नोई समाज का एक अत्यंत पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो राजस्थान के बीकानेर जिले में तलवा गांव के पास स्थित है। यह मंदिर बीकानेर शहर से लगभग 78 किलोमीटर और राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 295 किलोमीटर की दूरी पर बनाया हुआ है। जिस तरह से हर समुदाय के लिए कोई ना कोई मंदिर विशेष महत्व रखता है ठीक उसी प्रकार बिश्नोई समुदाय के लिए यह मंदिर विशेष धार्मिक महत्व रखता है।

मुक्तिधाम मुकाम मंदिर का इतिहास

मुक्तिधाम का मंदिर बिश्नोई समाज का एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। जहां भगवान गुरु जम्बेश्वर की पवित्र समाधि स्थित है। यह मंदिर पर्यावरण और जीव जंतुओं के लिए प्रति विश्नोई समाज की आस्था और प्रेम का प्रतीक है। कहा जाता है कि गुरु जम्बेश्वर में यहां 1540 से 1593 ईस्वी के बीच विश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी, जो पर्यावरण संरक्षण और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित है। गुरु जम्बेश्वर मंदिर की ऊंची चोटी पर रहते थे और अपने भक्तों को प्रकृति और जीवों की प्रति प्रेम की शिक्षा देते थे। उनकी पूजा और शिक्षाओं ने इस स्थान में धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अद्वितीय बना दिया है।

प्रचलित पौराणिक कथा

मुक्तिधाम मंदिर की पौराणिक कथा बेहद ही रोचक है, कहा जाता है कि जब गुरु जम्भोजी समाधि लेने वाले थे। उन्होंने खेजड़ी के पेड़ की और इशारा करते हुए अपनी भक्तों को निर्देश दिया कि 24 हाथ खोदने पर भगवान शिव का त्रिशूल और धुना मिलेगा और वही उनकी समाधि बनानी है। यह त्रिशूल और धुना आज भी मंदिर में विद्वान है। जिसे देखने के लिए बिश्नोई समाज के लोग विशेष आस्था से यहां आते हैं। फाल्गुन और आसोज अमावस्या के दौरान यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। यह मंदिर बिश्नोई समाज के लिए न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक का सामाजिक एकता का केंद्र।

 


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भावना चौबे

भावना चौबे

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