Saturday Special: सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी देवताओं को समर्पित होता है। ठीक उसी प्रकार शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शनिवार के दिन विधि-विधान से भगवान शनि देव की पूजा अर्चना करने से जीवन के तमाम संकटों से छुटकारा मिलता है। शनि देव को प्रसन्न करने से कुंडली से शनि दोष का प्रभाव भी कम हो जाता है। इसके अलावा शनिवार के दिन शनि देव की पूजा अर्चना करने के साथ शनि कवच का पाठ भी अवश्य करना चाहिए, चली जानते हैं शनि कवच का पाठ करने के क्या-क्या लाभ होते हैं।
शनि कवच का पाठ करने के क्या-क्या लाभ होते हैं
1. शनि की दशा और साढ़े साती से रक्षा
शनि ग्रह को कर्मफलदाता माना जाता है। यदि आपकी कुंडली में शनि की दशा या साढ़े साती चल रही है, तो शनि कवच का पाठ आपको उनके प्रकोप से बचाने और इन कठिन कालखंडों को आसानी से पार करने में मदद कर सकता है।
2. नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाव
शनि ग्रह को नकारात्मक ऊर्जाओं और ग्रहों के प्रभाव से भी जोड़ा जाता है। शनि कवच का पाठ इन नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाव करने और आपके जीवन में सकारात्मकता लाने में मदद कर सकता है।
3. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार
शनि कवच का पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए भी जाना जाता है। यह तनाव, चिंता, भय और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं से राहत दिलाने में मदद कर सकता है।
4. करियर में प्रगति
शनि ग्रह को करियर और पेशेवर जीवन से भी जोड़ा जाता है। शनि कवच का पाठ आपके करियर में प्रगति करने, बाधाओं को दूर करने और सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
5. धन और समृद्धि
शनि ग्रह को धन और समृद्धि से भी जोड़ा जाता है। शनि कवच का पाठ आपके जीवन में धन और समृद्धि लाने में मदद कर सकता है।
6. ग्रहों की शांति
शनि कवच का पाठ आपके जन्म कुंडली में ग्रहों की शांति स्थापित करने में भी मदद कर सकता है, जिससे आपको जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
7. आत्मविश्वास में वृद्धि
शनि कवच का पाठ आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने और जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए आपको शक्ति प्रदान करने में मदद कर सकता है।
”शनि कवच”
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।
ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।
नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।
पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।
(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)