धर्म, डेस्क रिपोर्ट। सनातन धर्म में दीप प्रज्वलन का अति महत्व है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में दीप प्रज्वलित किये बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। सवेरे स्नान के बाद पूजा घर में देवताओं की प्रतिमा या फोटो के सामने घी का दीपक जलाया जाता है। ऐसे ही शाम के समय भी तुलसी के समीप दीप प्रज्वलित किया जाता है। साथ ही पूजा घर में भी दीप प्रज्वलित कर आरती की जाती है।
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दरअसल मान्यता है कि संध्या के समय माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकलती है। इसलिए उनके स्वागत में दीप प्रज्वलित किये जाते हैं ,ताकि वे प्रसन्न हों और सुख संपत्ति का आशीर्वाद प्रदान करें। इसलिए संध्याकाल में घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर दीप जलाये जाते हैं। वास्तुशास्त्र की मानें तो दीप जलाने से अन्धकार का नाश होता है, इसलिए नकारात्मकता दूर होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी दीप प्रज्वलन से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जिस घर में सकारात्मकता हो, वहां माँ लक्ष्मी का वास होता है।
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हमारा शरीर पञ्च तत्वों से बना होता है। इसमें से एक अग्नि तत्व भी है। इसलिए दीप जलाने से अग्निदेव प्रसन्न होते हैं और उनको साक्षी मानकर किये गए अनुष्ठान सम्पूर्ण होते हैं। इसलिए हिन्दू मान्यताओं में हर शुभ कार्य और पूजा में दीप जलाया जाता है। किसी भी पूजा-अनुष्ठान में एक मुखी दीपक से लेकर पंचमुखी, सप्तमुखी और नौमुखी दीप प्रज्वलित किये जाते हैं। सबका अपना अलग-अलग महत्व है। मान्यता है कि माँ लक्ष्मी एवं हनुमान जी के सम्मुख पंचमुखी दीप प्रज्वलित करना चाहिए। ऐसा करने से वे प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।