बुलेट ट्रेन के भारत में आने से पहले ही लग रहा है मानो पेट्रोल और डीज़ल रोज़ाना ट्रेन का ट्रायल ले रहे हैं। जिस गति से पेट्रोल–डीजल भाग रहे हैं वो दिन दूर नहीं जब आपको यह दोहरा शतक मारते हुए नजर आएंगे। पर आखिरकार इन बढ़ती कीमतों का बोझ उठाना आम जनता को ही पड़ेगा।
बात करें बदलते परिवेशों की तो आज गाड़ी के बिना इंसान की जिंदगी मानो थम ही जाएगी, चाहे बाज़ार से सब्जी लाना हो या दूर यात्रा पर जाना हो, बिना वाहन के ये संभव नहीं। ऐसे में अगर लोगों को कोई उम्मीद की किरण नज़र आ रही है तो वो है इलेक्ट्रिक व्हीकल।
बात करें इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तो यह अपनी कम कीमत और तेल की बचत की वजह से धीरे धीरे बाज़ार में अपना सिक्का जमाती हुई नज़र आ रही हैं। जेब के साथ ये वाहन ध्वनि और वायु प्रदूषण को कम करने में भी मददगार साबित हो सकते हैं। जो लोग रोज़ाना 100km या उससे कम दूरी का सफर तय करते हैं उनकी जेब के लिए ये वाहन काफी मददगार साबित हो सकते हैं।
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पिछले कुछ दिनों में इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनियों की बात करें तो इनके शेयर भी आसमान की ओर बढ़ रहे हैं। पर बाज़ार में आने के बाद और लोगों के गाड़ियां इस्तेमाल करने के बाद अब धीरे धीरे इसकी समस्याएं भी सामने आने लगीं हैं।
आइए जानें किन किन समस्याओं का करना पड़ सकता है सामना!
सोशल मीडिया पर इलेक्ट्रिक वाहनों के उपभोक्ताओं की कहानी सुनें तो शायद आपका विचार इसे खरीदने को लेकर थोड़ा कम होने लगे। बैंगलोर के रहने वाले विश गंती ने एक चैनल से बात करते में बताया कि कैसे वे रोज़ अपना इलेक्ट्रिक स्कूटर बिल्डिंग की पांचवी मंज़िल पर लेके जाते हैं। इसका कारण बताते हुए वे कहते हैं कि स्कूटर को चार्ज करने के लिए जब उन्होंने पार्किंग में EV चार्जिंग प्वाइंट की बात अपनी सोसायटी के एसोसिएशन से की तो उनकी इस मांग को पूरा करने के लिए मना कर दिया गया। जिसके बाद उन्हें मजबूरन रोज़ाना 5th फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट में गाड़ी को लेजाकर चार्ज करना पड़ता है। साथ ही उन्होंने जनता को यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे घर के प्वाइंट पर गाड़ी को चार्ज करना काफी जोख़िम भरा हो सकता है।
एक ओर जहां सरकार EV’s पर सब्सिडी देकर इसे आम जनता की जेब के लिए आसान बना रही है, वहीं इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी लोगों के लिए इस वक्त सबसे बड़ी समस्या दिखाई दे रही है। बात करें घर के चार्जिंग प्वाइंट की तो यह गाड़ी को चार्ज करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, इसके लिए आपको अलग से अडाप्टर खरीदना होगा जिसका खर्च आपको अपनी जेब से देना होगा। इसके अलावा उपभोक्ताओं को अब तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि इसमें इस्तेमाल होने वाली बैटरी कुल कितनी बिजली की खपत करती है।
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बैटरी के रिप्लेसमेंट की बात करें तो अब तक किसी भी कंपनी द्वारा यह साफ नहीं किया गया है कि इसकी कीमत कितनी होगी। चार्जिंग प्वाइंट की कीमत भी अब तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है।
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एक और समस्या जो गाड़ी मालिकों द्वारा बताई जा रही हैं वो है इसकी सर्विस की। किसी भी गाड़ी की सर्विस करने वाले मिस्त्री अपनी कार्यकुशलता और अनुभव से गाड़ी की सर्विस कर उसे नए जैसा बना देते हैं। पर इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में अभी मिस्त्री ट्रेंड नहीं हैं, ऐसे में देखना होगा कि गाड़ी की सर्विस की कीमत और क्वालिटी कैसी रहेगी। इलेक्ट्रिक वाहनों की रीसेल वैल्यू क्या होती इसकी जानकारी भी अभी तक स्पष्ट नहीं की गई है।
चार्जिंग प्वाइंट की कमी वो भी ऐसे में जब सरकार वर्ष 2030 तक 50–60% गाड़ियों को इलेक्ट्रिक करने की बात कर रही है निश्चित ही सरकार के इस सपने को साकार करने में बड़ी बाधा हो सकती है। लोगों में इलेक्ट्रिक वाहनों की जानकारी की कमी को भी इस समय एक बड़ी समस्या के रूप में देखा जा रहा है। चार्जिंग प्वाइंट को लेकर सोसायटियों द्वारा नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट की बात करें या चार्जिंग प्वाइंट को लेकर रेसीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के नियमों के बदलाव की बात, एक दम से यह बदलाव हो पाना संभव नहीं होगा। अब देखना होगा सरकार द्वारा 2030 के अपने इस सपने को साकार करने के लिए और लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने को लेकर प्रोत्साहित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।