उज्जैन (Ujjain) एक ऐसा शहर, जहां हर गली, हर घाट और हर मंदिर में इतिहास और आस्था एक साथ सांस लेते हैं। महाकाल की नगरी के रूप में विश्वविख्यात उज्जैन अब एक और बड़ी धार्मिक पहचान की ओर बढ़ रहा है। इंदौर रोड स्थित त्रिवेणी शनि मंदिर को केंद्र में रखकर बनने जा रहा ‘शनि लोक’, न केवल एक धार्मिक परियोजना है, बल्कि उज्जैन के भविष्य की दिशा तय करने वाला कदम भी माना जा रहा है।
महाकाल महालोक के बाद अब शनि लोक परियोजना को मिली मंजूरी ने उज्जैन को फिर सुर्खियों में ला दिया है। 140 करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी योजना से विक्रम संवत के उद्गम स्थल को विश्वस्तरीय स्वरूप मिलेगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के ऐलान के बाद यह साफ हो गया है कि सिंहस्थ-2028 से पहले उज्जैन को एक नए धार्मिक-पर्यटन मॉडल पर तैयार किया जा रहा है।
उज्जैन में शनि लोक परियोजना जानें क्या है पूरा प्लान?
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा मंजूर की गई शनि लोक निर्माण परियोजना के तहत त्रिवेणी शनि मंदिर और आसपास के क्षेत्र को एक संगठित धार्मिक कॉरिडोर के रूप में विकसित किया जाएगा। यह परियोजना करीब 21100 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले मंदिर परिसर और त्रिवेणी घाट, शिप्रा तट को आपस में जोड़ेगी। यह कॉरिडोर महाकाल महालोक की तर्ज पर होगा, जहां श्रद्धालु केवल दर्शन ही नहीं, बल्कि शनि उपासना से जुड़ी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पौराणिक यात्रा का अनुभव कर सकेंगे। सरकार का फोकस है कि शनि लोक केवल एक मंदिर विस्तार न रहकर, उज्जैन का दूसरा बड़ा धार्मिक आकर्षण बने।
त्रिवेणी शनि मंदिर, इंदौर रोड, उज्जैन में प्रस्तावित ‘शनि लोक’ परियोजना की कुल लागत 140 करोड़ रुपये है। इस परियोजना का उद्देश्य धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना, श्रद्धालुओं की आस्था को सशक्त करना और स्थानीय स्तर पर विकास को गति देना है। सिंहस्थ-2028 से पहले इसकी प्रमुख संरचनाओं को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।
क्यों खास है त्रिवेणी शनि मंदिर?
त्रिवेणी शनि मंदिर को सामान्य शनि मंदिरों से अलग माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसकी स्थापना स्वयं सम्राट विक्रमादित्य ने की थी। यही कारण है कि इसे विक्रम संवत का उद्गम स्थल माना जाता है। यह देश का पहला ऐसा शनि मंदिर है, जहां भगवान शनि को शिव स्वरूप में प्रतिष्ठित किया गया है। यही विशेषता इसे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अलग पहचान देती है।
हर शनि अमावस्या पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शनि का तेल से अभिषेक करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं। आंकड़ों के अनुसार, एक शनि अमावस्या पर यहां 5 क्विंटल से अधिक तेल का अभिषेक किया जाता है, जो इस मंदिर की आस्था और लोकप्रियता को दर्शाता है।
शनि लोक से उज्जैन को क्या मिलेगा?
शनि लोक परियोजना का प्रभाव केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी गहरा होगा। महाकाल महालोक इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। 2022 में महाकाल महालोक के लोकार्पण के बाद अब तक 7 करोड़ से अधिक श्रद्धालु उज्जैन पहुंचे हैं। इससे होटल और धर्मशालाओं की संख्या बढ़ी, स्थानीय व्यापार को नया जीवन मिला, टैक्सी, ऑटो और परिवहन क्षेत्र में रोजगार बढ़ा, युवाओं के लिए नए अवसर बने। अब शनि लोक के निर्माण से यही मॉडल दोहराए जाने की उम्मीद है। पर्यटन विशेषज्ञों का मानना है कि शनि लोक उज्जैन को ऑल सीजन धार्मिक डेस्टिनेशन बना सकता है।
सिंहस्थ-2028 और शनि लोक को क्यों माना जा रहा निर्णायक कदम?
सिंहस्थ कुंभ-2028 को लेकर सरकार पहले से ही व्यापक तैयारियों में जुटी है। शनि लोक परियोजना को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
त्रिवेणी घाट, शिप्रा तट और शनि लोक को जोड़कर एक ऐसा धार्मिक सर्किट तैयार होगा, जहां श्रद्धालु लंबे समय तक रुकेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार सिंहस्थ में आने वाली भीड़ को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकेगा, श्रद्धालुओं का दबाव केवल महाकाल तक सीमित नहीं रहेगा, शहर के अन्य हिस्सों में भी आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी।
शनि लोक के साथ-साथ उज्जैन को दो और बड़ी धार्मिक-सांस्कृतिक सौगात मिलने जा रही हैं। नारायणा धाम को श्रीकृष्ण-सुदामा लोक के रूप में विकसित करने की योजना को भी सरकार ने प्राथमिकता दी है। इस परियोजना पर 120 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, जिसमें बाल्य कथा प्रांगण, श्रीकृष्ण-सुदामा की मूर्तियां, स्मृति वन, ओपन एयर थिएटर, आधुनिक पार्किंग सुविधाएं तैयार की जाएंगी। इसका उद्देश्य श्रद्धालुओं को श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता को जीवंत रूप में अनुभव कराना है।
सांदीपनि आश्रम बनेगा आधुनिक वैदिक शिक्षा केंद्र
उज्जैन की तीसरी बड़ी योजना सांदीपनि आश्रम से जुड़ी है। यहां 81 करोड़ रुपये की लागत से ध्यान क्षेत्र और इको-कैंपस विकसित किया जाएगा।
यह वही सांदीपनि आश्रम है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने गुरु सांदीपनि से शिक्षा प्राप्त की थी। इस परियोजना का उद्देश्य गुरु-शिष्य परंपरा को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करना, वैदिक शिक्षा और ध्यान को वैश्विक मंच देना, धार्मिक पर्यटन के साथ बौद्धिक पर्यटन को बढ़ावा देना।





