समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान 23 महीने बाद मंगलवार को सीतापुर जेल से जमानत पर रिहा होने वाले हैं। दो जन्म प्रमाण पत्र मामले में सात साल की सजा सुनाए जाने के बाद वे, उनकी पत्नी तंजीम फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम जेल में थे। इस दौरान आजम पर 100 से अधिक मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें जौहर यूनिवर्सिटी से जुड़े सरकारी जमीन हथियाने के आरोप प्रमुख हैं। उनकी रिहाई से रामपुर में सियासी हलचल तेज हो गई है, जहां उनके समर्थक उत्साहित हैं।
योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद 2017 से आजम और उनके परिवार पर कानूनी शिकंजा कसा गया, जिसके चलते 90 से ज्यादा केस दर्ज हुए। रामपुर की सियासत में आजम का दबदबा कमजोर पड़ा, जहां वे खुद विधायक थे, बेटा अब्दुल्ला स्वार टांडा से विधायक और पत्नी राज्यसभा सदस्य रह चुकी हैं। अब उनका परिवार किसी भी सदन में प्रतिनिधित्व नहीं करता। रामपुर लोकसभा सीट पर सपा के मोहिबुल्लाह नदवी सांसद हैं, लेकिन वे आजम के विरोधी खेमे से माने जाते हैं।
मुस्लिम राजनीति में बदलाव की संभावना
आजम की रिहाई से उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति में बदलाव की संभावना है। रामपुर के अलावा मुरादाबाद, संभल और पश्चिमी यूपी के जिलों में उनका प्रभाव रहा है। जेल से उन्होंने इंडिया गठबंधन पर मुस्लिमों की अनदेखी का आरोप लगाया था, जिससे सपा और कांग्रेस में हलचल मची। उनके समर्थक अब सक्रिय हो सकते हैं, जिससे सपा के स्थानीय संगठन में आजम का असर बढ़ेगा और सांसद नदवी का प्रभाव कम हो सकता है।
अखिलेश यादव के साथ आजम की केमिस्ट्री
सबसे बड़ा सवाल अखिलेश यादव के साथ आजम की केमिस्ट्री का है। जेल में रहते हुए अखिलेश से मिलने की कम कोशिशों से आजम नाराज बताए जाते हैं। चंद्रशेखर आजाद जैसे नेता उनसे मिले, जिससे सपा छोड़ने की अटकलें हैं। हालांकि, जानकार कहते हैं कि आजम प्रेशर पॉलिटिक्स के माहिर हैं और सपा का दामन नहीं छोड़ेंगे, जैसे पहले भी जेल से निकलकर अखिलेश ने उन्हें मना लिया था।





