बॉलीवुड की पहली ग्रेजुएट हीरोइन दिलीप कुमार और राज कपूर संग किया काम लेकिन गुमनामी में हुआ दुखद अंत
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लीला चिटनिस वो पहली महिला थीं जिन्होंने हिंदी फिल्मों में पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और संवेदनशील नायिका की नई परिभाषा पेश की। उस दौर में जब हीरोइनों को सिर्फ सजावट या रोने-धोने के लिए दिखाया जाता था, उन्होंने सोचने और बोलने वाली महिला का किरदार निभाया।
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कर्नाटक के धारवाड़ में जन्मी लीला ने 15 साल की उम्र में शादी कर ली थी और चार बेटों की मां बनने के बाद उन्होंने मुंबई आकर थिएटर से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। यह उनके संघर्षशील और प्रेरणादायक जीवन की शुरुआत थी।
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1930 और 40 के दशक में उन्होंने दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर जैसे दिग्गजों के साथ काम किया। फिल्मों 'कंगन', 'बंधन', और 'झूला' में उन्होंने एक आत्मनिर्भर और प्रगतिशील महिला की भूमिका निभाई, जिसने समाज को नई दिशा दी।
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जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, उन्हें मां के रोल मिलने लगे। लेकिन उन्होंने मां के किरदार को सिर्फ त्याग की मूरत न बनाकर एक जीवंत, गरिमामयी और मजबूत महिला के रूप में प्रस्तुत किया। 'आवारा', 'गाइड', और 'गंगा-जमना' में उनकी मां की भूमिका आज भी याद की जाती है।
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मराठी थिएटर से शुरुआत करते हुए लीला चिटनिस ने जातिवाद, महिला अधिकार और सामाजिक दबावों जैसे विषयों पर आवाज उठाई। उन्होंने अपने नाटकों और फिल्मों से हमेशा समाज को सोचने पर मजबूर किया।
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बहुत कम लोग जानते हैं कि लीला चिटनिस ने फिल्मों का निर्देशन और निर्माण भी किया। “किसी से ना कहना” और “आज की बात” जैसी फिल्मों के ज़रिये उन्होंने सामाजिक सोच को सिनेमा में उतारा। उनका लिखा नाटक ‘एक रात्रि अर्ध दिवस’ भी रंगमंच में प्रसिद्ध है।
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अपने जीवन के अंतिम सालों में लीला चिटनिस अमेरिका चली गईं, जहां 14 जुलाई 2003 को एक वृद्धाश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली। एक समय की बॉलीवुड आइकन अपने देश से दूर गुमनामी में विदा हो गईं।
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लीला चिटनिस सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक विचार, एक क्रांति थीं। उन्होंने साबित किया कि पढ़ाई, आत्मबल और ऐक्टिंग के ज़रिये महिला क्या कुछ हासिल कर सकती है। उनका जीवन आज की पीढ़ी के लिए भी उतना ही प्रेरणादायक है।
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