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महाभारत: जब श्रीकृष्ण ने दो बार खोली अपनी तीसरी आंख, दोनों बार टली थी भयानक तबाही

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महाभारत में दो ऐसे मौके आए जब श्रीकृष्ण ने अपना तीसरी आँख (दिव्य नेत्र) खोला। यह आँख ब्रह्मांडीय शक्ति, डिवाइन कान्शस्निस और डिस्ट्रॉइअर एनर्जी का सिम्बल माना जाता है।

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जब कर्ण अर्जुन पर इंद्रदत्त अस्त्र चलाने वाला था, कृष्ण को भविष्य का विनाश दिख गया। तभी उन्होंने तीसरी आँख खोलकर दिव्य प्रकाश फैलाया, जिससे कर्ण का ध्यान भटका।

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कर्ण के भटकते ही अर्जुन ने तुरंत प्रहार किया और उसका वध कर दिया। अगर कृष्ण का तीसरी आँख न खुलता, तो अर्जुन का अंत निश्चित था।

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इस घटना ने अर्जुन को गहराई से यह एहसास करा दिया कि कृष्ण सिर्फ उनके सारथी नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर हैं – विष्णु के रूप में अवतरित।

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सौप्तिक पर्व के बाद, अश्वत्थामा ने परीक्षित को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। अगर वह अस्त्र सफल होता, तो पांडव वंश समाप्त हो जाता।

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कृष्ण ने इस विनाश को रोकने के लिए तीसरी आँख खोला। उनकी डिवाइन एनर्जी ने ब्रह्मास्त्र को निष्क्रिय कर दिया और परीक्षित की जान बच गई।

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कृष्ण की शक्ति देखकर अश्वत्थामा ने हार मान ली, अपनी मणि समर्पित की और उसे शाप मिला कि वह अनंत काल तक पृथ्वी पर भटकेगा – बिना मोक्ष के।

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कृष्ण का दिव्य नेत्र शिव के तीसरे नेत्र और विष्णु के सुदर्शन चक्र का संयुक्त स्वरूप था। यह नेत्र अनियंत्रित विनाश कर सकता था, इसलिए वे इसे केवल संकट के समय ही खोलते थे, ताकि शक्ति का उपयोग न्याय के लिए हो – दुरुपयोग के लिए नहीं।

“बनारस का वह रहस्यमय साधु, जिसने मरी हुई चिड़िया में फूँकी नई जान, सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेकर करता था अद्वितीय चमत्कार।”