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"भूख से तड़पते हुए गुज़रे दिन, कभी नसीब में आया बासी और सड़ा खाना... ग़रीबी में बीती ज़िंदगी, फिर किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि बन गए 'शोले' के चमकते सितारे।"

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जगदीप का जन्म मध्य प्रदेश के दतिया में एक रईस परिवार में हुआ, लेकिन उनके पिता की जवानी में ही मौत हो गई, जिससे पूरा परिवार बिखर गया।

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 भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान जगदीप ने कराची से भारत आकर खून-खराबा और fluctuation का भयंकर मंजर अपनी आंखों से देखा।

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कभी शानो-शौकत में जीने वाला परिवार भारत आने के बाद आर्थिक तंगी में इस कदर फंसा कि रोटी के लाले पड़ गए।

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मुंबई में जगदीप को ऐसी हालत में जीना पड़ा जहां वह बेकरी की फर्श से गिरी हुई ब्रेड के टुकड़े, जिन पर चूहे और कॉकरोच मुंह मार चुके होते, साफ कर के खा लेते थे।

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मुंबई पहुंचने के बाद जगदीप की मां ने अनाथालय में खाना पकाने का काम किया और जगदीप ने टिन फैक्टरी में काम शुरू कर दिया।

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1950 में बीआर चोपड़ा की फिल्म अफसाना से उन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में करियर की शुरुआत की और पहली कमाई 3 रुपये थी।

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जगदीप ने करीब 400 फिल्मों में ऐक्टिंग किया और कॉमेडी आर्टिस्ट के रूप में पहचान बनाई, जिनमें 'शोले' का सूरमा भोपाली किरदार सबसे लोकप्रिय रहा।

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फिल्म हम पंछी एक डाल के में शानदार ऐक्टिंग के लिए जवाहरलाल नेहरू ने पूरी टीम को बुलाया और जगदीप को अपनी छड़ी उपहार में दी।

10वीं भी पूरी नहीं की थी, लेकिन एक्ट्रेस ने कर ली शादी — 17 की उम्र में गर्भ में पल रही बेटी के लिए करती थी मौत की दुआएं।”