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क्‍या बच्‍चों की संपत्ति पर होता है माता-पिता का अधिकार? बेटा और बेटी के लिए अलग-अलग कानून

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 भारतीय उत्तराधिकार कानून के अनुसार, सामान्य परिस्थितियों में माता-पिता को बच्चों की संपत्ति पर अधिकार नहीं होता।

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कुछ विशेष स्थितियों में माता-पिता को बच्चों की संपत्ति पर दावा करने का अधिकार मिलता है, जैसे कि बच्चे की असामयिक मृत्यु हो जाना, बालिग और अविवाहित होना, और वसीयत न बनाना।

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बच्चे की संपत्ति के मामले में माता को पहले वारिस का दर्जा दिया जाता है। यदि मां नहीं है, तो पिता को दूसरा वारिस माना जाता है।

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अगर मां उपलब्ध नहीं है, तो पिता संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते हैं। हालांकि, पिता के साथ अन्य उत्तराधिकारियों को भी संपत्ति में हिस्सेदारी दी जाती है।

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यदि बेटा अविवाहित है और वसीयत नहीं है, तो उसकी संपत्ति पहले मां और फिर पिता को दी जाएगी। विवाहित बेटे के मामले में, उसकी पत्नी को पहली वारिस माना जाएगा।

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बेटी की संपत्ति उसके बच्चों और पति को प्राथमिकता में दी जाती है। यदि बच्चे नहीं हैं, तो पति और अंत में माता-पिता को अधिकार मिलता है।

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2005 में संशोधित हिंदू उत्तराधिकार कानून ने बच्चों की संपत्ति पर माता-पिता के अधिकारों को परिभाषित किया। यह बच्चों के लिंग और वैवाहिक स्थिति के आधार पर अलग-अलग प्रावधान करता है।

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कानून स्पष्ट रूप से संपत्ति के दावेदारों का ऑर्डर निर्धारित करता है, जो मां, पिता, पत्नी, बच्चे, और अन्य उत्तराधिकारियों के आधार पर तय होता है। बेटा और बेटी के लिए यह क्रम अलग-अलग होता है।

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