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"खूब एड़ियां घिसीं, ठोकरें खाईं, मगर मेहनत रंग लाई —  फिर 1 ही साल में दी 10 सुपरहिट फिल्में; मीना कुमारी और मधुबाला भी थीं इनकी दीवानी!"

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प्रदीप कुमार ने 1949 में मुंबई आकर फिल्मों में काम पाने के लिए खूब मेहनत की। एडियां घिसीं, धक्के खाए और दर-दर की ठोकरें खाईं। शुरुआत में उन्होंने कैमरामैन धीरेन डे के सहायक के तौर पर भी काम किया और हिंदी-उर्दू भाषाओं पर पकड़ मजबूत की।

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अपने करियर की शुरुआत बंगाली फिल्मों से करने वाले प्रदीप कुमार ने 1950 में हिंदी सिनेमा में कदम रखा और जल्दी ही अपनी एक अलग पहचान बना ली।

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लंबे कद, सौम्य मुस्कान और गहरी आंखों वाले इस अभिनेता को अक्सर ऐतिहासिक व पीरियड फिल्मों में नवाबों, राजाओं और शायरों की भूमिकाओं में देखा गया। उनके संवादों और अभिनय में नजाकत और तहज़ीब साफ नजर आती थी।

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1952 में प्रदीप कुमार को पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म ‘आनंद मठ’ में काम करने का मौका मिला, जिसने उन्हें रातोंरात पहचान दिला दी।

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प्रदीप कुमार की जोड़ी मीना कुमारी और मधुबाला के साथ बेहद लोकप्रिय रही। दोनों ही अभिनेत्रियां इस शायराना हीरो की दीवानी थीं और दर्शक इनकी जोड़ी को खूब पसंद करते थे।

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1956 प्रदीप कुमार के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। इस साल उनकी 10 फिल्में रिलीज हुईं और सभी सुपरहिट रहीं। इससे उनका स्टारडम चरम पर पहुंच गया।

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देवानंद, दिलीप कुमार, अशोक कुमार और राजेंद्र कुमार जैसे सितारों की तरह प्रदीप कुमार भी 1960 के दशक में हिंदी सिनेमा के चमकते सितारे बन गए थे।

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प्रदीप कुमार उन गिने-चुने अभिनेताओं में से थे जो एक ही साल में 10 फिल्में देकर सभी को हिट बना देते थे। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि हर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा देती थी।

“31 साल की उम्र में बिजनेसमैन से की शादी, आखिरी फिल्म बनी 2 पार्ट वाली सुपरहिट, करियर को खतरे में डालकर निभाया ये खास किरदार।”